Wednesday, 23 July 2014

एक ही ठोकर को हम उम्र भर सँभालते रहे

दोस्त बन बन के लोग दुश्मनी निकालते रहे
एक ही ठोकर को हम उम्र भर सँभालते रहे

 गोया बार बार हम भी कोशिशे करते रहे
वो भी माशाल्लाह बारहा गलतिया निकलते रहे
कोई जोहरी की सी नज़र से हमे देखेगा
कई सदिया हम ये हसीन ख्वाब पालते रहे
लोग अंधेरो में तारीख लिख के चल दिए
हम धीमी आंच पे अपने चावल उबालते रहे
फसले हमारे गाँव की सब शहर चली गयी
लोग खाली पेट ज़मीन की कमिया निकालते रहे

6 comments:

  1. बढ़िया है :)


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  2. धन्यवाद sir बहुत बहुत
    ठीक कर दिया हैं अब,पता नही था

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  3. गोया बार बार हम भी कोशिशे करते रहे
    वो भी माशाल्लाह बारहा गलतिया निकलते रहे ..
    ये सिलसिला जो यूँ ही चलता रहे तो जिंदगी सफल है ... लाजवाब बात ...

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  4. Gajab sirji
    Koi johri ki nazar se hume bhi dekehga

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  5. लोग अंधेरो में तारीख लिख के चल दिए
    हम धीमी आंच पे अपने चावल उबालते रहे
    फसले हमारे गाँव की सब शहर चली गयी
    लोग खाली पेट ज़मीन की कमिया निकालते रहे
    ..बहुत खूब!

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