Saturday, 26 July 2014

राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में

राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में

घोसले उजाड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में

उसकी मौत ने इंकलाब को पैदा किया
कुछ आग बची रह गयी थी राख़ में,

गले भी मिलता हैं मैं खजर निकल लेता हूँ
ये कौन ज़हर घोल रहा हमारे दिमाक में,



राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में

घोसले उजाड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में

उसकी मौत ने भी इंकलाब पैदा किया
कुछ आग बची रह गयी थी राख़ में,

गले भी मिलता हैं तो खजर निकाल लेता हूँ
ये कौन ज़हर घोल रहा हमारे दिमाक में,

बाखुदा ये दिन भी था हमारी किश्मत में,
हाथ जो तुमने रख  दिया मेरे हाथ में

मैं भी तुमको लूट के विलायत भाग जायूँगा
तुम उलझे रहो मज़हबी दंगे फसाद में

जिक्र तुम्हारा हो तो खुद सर झुका लू
तूने क्या छोड़ा हैं जो बोल दू मैं जवाब मे,

तुम कही मिल भी जाओ तो मैं छुप जाता हूँ
लुत्फ मिलता हैं अब हमे इसी प्यास में



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