Thursday 16 October 2014

रात भर हम कफ़न में खुदको समेटते रहे,

रात भर हम कफ़न में खुदको समेटते रहे,
गाँव वाले शहर से  बेटे की राह देखते रहे

रिश्तो की गर्मी तो कबके टूट चुकी थी,
यादो में बैठ कर अक्सर हाथ सेकते रहे.
लोगो ने जमीं से सोना पैदा किया
जिनकी नज़र चाँद पे थी वो आसमा देखते रहे
बेरुखी तमाम तितलियों की साजिश थी,
नादान हम तमाम उम्र जाल फेकते रहे
खाली जेब भरकर अशर्फिया रोबदार बन गयी
दोस्त जो रोज़ थोडा थोडा इमान बेचते रहे
रब्त सब रिश कर कबके जफ़र जाया हुए
हम क्यों उनके  जाने को रोकते रहे...


Sunday 5 October 2014

रात क फरिश्तो ने सुबह के काले सवेर देखे...

आसमानों की बुलंदिया देखी,बेबसी के अंधेरे देखे,
रात क फरिश्तो ने सुबह के काले सवेर देखे...

फितरते बदलती हैं जरूरते ढलती हैं
दो पल के फासलों में सदियों के फेरे देखे

इन बेकस हालातो में दुनियादारी जायज़ हैं
तूने मेरी मुश्किलें देखी मैंने रंग तेरे देखे