Thursday 20 November 2014

वही सुरूर वही खलिश वही बेख्याली हैं

वही सुरूर वही खलिश वही बेख्याली हैं
आज फिर दिल ने एक उम्मीद पाली हैं

कई रोज़ से किताबे रोशन हैं देर रात तक
एक बार फिर किश्मत आजमानी हैं

खोदते हैं हम दोनो मिलकर कई कब्रे
चंद सालो मैं सादिया दफनानी हैं

गुज़र चुके हैं कई साल इसी सफ़र मैं
कुछ लोगो ने रास्ते ही मंजिल बनाली हैं

एक चाँद कल रात आँखों मैं उतरा था
सुबह से दिल पर बौझ भारी हैं

बुला बुला कर कई चिराग बुझ गए गांव के
शहर की रौशनी बड़ी बेगानी हैं

नया रंग ओढ़ के लौट तो आई हैं बहार
ज़फर सारी चालाकी जानी पहचानी हैं

Tuesday 18 November 2014

प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं ...

बारिशो की बूदो का क्या गज़ब फ़साना हैं
प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं

तुम्हारे ही नखरे हैं तुम्हारा ही बहाना हैं
कल हो न हो आज तुमने अंगुलियों पे नचाना हैं

दरिया रुक नही सकता आसमा झुक नही सकता
दुनियादारी तो तुम्हारा सब बहाना हैं

हूर की सी सूरत हैं मिश्रियो सी बाते हैं
आंख भी नशीली चाल तो रिन्दाना हैं

तौबा इस दुनिया का ये भी क्या रिवाज़ाना हैं
अमीरे शौक के जलशे हैं हमारी भूख को एक दाना हैं

क्यों मैं वक़्त की दौड़ में पीछे रह गया
क्यों हिम्मतो के आगे बदकिश्मती को आजाना हैं


Thursday 13 November 2014

आग से पानी बनाता हूँ

आग से पानी बनाता हूँ
मैं उसको आजमाता हूँ

बहुत बनके कलंदर फिरता हैं
इधर भेजो आईना दिखाता हूँ
ख्वाबो की राख में चिंगारी दफ़न हैं
कलेजा जलता हैं जब हाथ लगाता हूँ
कश्तीया छोड़ भाग जाते हैं
मैं तुफानो को बुलाता हूँ
कम्जर्फी की जब भीड़ देखता हूँ
मंदिरों से लौट आता हूँ