Thursday 21 March 2019

कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ.....!





कुछ अनकही बातों को बोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,


हरेक लब्ज़ में लम्हो के समुन्दर है,
जाने कैसे कागज़ में सब उड़ेल देता हूँ,

किस नकाब में कौन सा चेहरा पोशीदा हैं,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,

हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,

क़लम कभी नये उनमान को जब जम जायें,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,

खुद छुपा रखता हूँ तुम्हे सब से,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,

Friday 1 March 2019

टूट-टूट कर कई बार जुड़ा हूँ मैं......








बड़ी मुश्किल से इस बार खड़ा हूँ मैं,
टूट-टूट कर कई बार जुड़ा हूँ मैं..


जहाँ हूँ मैं बस तबाही हैं बर्बादी हैं,
लोग ये भी कहते हैं बहुत कर्मजला हूँ मैं,

बनाने वाले घर के,कबके मुझे भूल गये,
नींव का पत्थर ख़ाक में दबा हूँ मैं,

तुम एक बार देख भी लो तो बरस पड़े,
थाम कर बदलो को कबसे खड़ा हूँ मैं,

आँख में भरलो,ख्यालों में जवान करो,
एक पल की नज़दीकी,सदियो का फासला हूँ मैं,

अगर न चाहो,तो यू ही घुट मारने दो,
तुम्हारी सारी इल्तज़ा,फरियादों से बड़ा हूँ मैं,

अब जहाँ तुम हो,वहाँ नही हूँ मैं
जहाँ थे तुम अब भी वही पड़ा हूँ मैं....