Friday 31 August 2018

अपनी खताओ को दोहरा रहा हूँ मैं ....

 

 








जाने कौन से उसूल जीये जा रहा हूँ मैं,
अपनी खताओ को दोहरा रहा हूँ मैं ....

सारी ख्वाहिशे ,सपने तमाम ,जाया हुये ,
अपने ही फैसलों से पछता रहा हूँ मैं ...

उस मासूम होठो की हँसी रोकती हैं कदम ,
जबकी सदियों से खुदी में बहरा रहा हूँ मैं ...

ये मुफ्लीशी,लाचारी ये समझोतों की जिंदगी ,
रोज़मर्रा की तकरीरो से उकता रहा हूँ मैं ...

हमारी खुद्दारी भी दोस्तों में मशहूर थी,
तुम्हारी जिदो पे फिर भी झुकता रहा हूँ मैं ...

खाता हूँ रोज़ ठोकरे मगर जुनुन हैं के कम नहीं ,
बुझती हुयी आग से  धुआ सा उठता रहा हूँ मैं ...

तेरी एक छुअन से जागी हजारो ख्वाहिशे ,
जबकी एहसास के रिश्ते को कबसे दबा रहा हूँ मैं ..
..

Monday 27 August 2018

चूड़ियों की खनखन मे,गेसुओं की उलझन में,

चूड़ियों की खनखन मे,गेसुओं की उलझन में,
ज़िन्दगी चेहरे पड़ती हैं बारबार,आजकल दर्पण में,

सारी रात दुनिया जहान मेरी गुलाम रही,
एक जुनून सा हावी रहा तेरे मेरे तन मन मे,

कुंडीया पाबंदिया एक पल में सब जाया हुए,
इंजन सा एक दौड़ रहा हाय मेरी धड़कन में,

तख्तो ताज कोई जागीर किसे मिले न मिले
ये रंग बाखुदा नसीब हो हरेक जीवन में,

बस एक मुलाकात से क्या खूब जज़्बात पैदा हुए,
फूल सा वो मुरझा गया,आग लगे इस जोबन मे,

गुनाह तेरे भी रहे होंगे जो मुझसे आ टकराई हैं,
फ़िज़ा माँग ली तूने बहारो के मौसम में,

उसूलो की लड़ाई हैं कठिनाई तो बेमानी हैं,
सीता चली लक्ष्मण चले जब श्री राम चले वन मे,

राते जगती हैं दिन बेचैन फिरते हैं,
एक ख्वाब छू लिया था मैंने किसी उफन मे,

कश्तियां खुद तुफानो को गले लगती हैं,
जाने कौन सा सकून हैं कैसा करार हैं इस चुभन में,

आज कैसे तुम हमारी गलतिया गिनाते हो
दरिया सारि हदे भूल गया चौमास की उफन मे,

यार परदेश में बात करने को तरस जाते हैं,
क्या खूब ईद मनी होगी मेरे वतन मे,

Sunday 26 August 2018

तेरी तू में,मेरी मै में,हम दोनों बर्बाद  हुए...!!!





सात फेरों के सारे वादे,खुदगर्ज़ी में ख़ाक हुए
तेरी तू में,मेरी मै में,हम दोनों बर्बाद  हुए


कुछ बातों का सुलझना जैसे अब नामुमकिन हैं
जन्नत का सा वज़ूद था पर कश्मीर से हालात हुए,

सौ मसलो का हल बस एक हल्की सी गर्मी हैं
तुमने यू जब गले लगाया कितने पंछी आज़ाद हुए,

बारिश बादल फूल बहारे, ये तो सब दिखावा हैं,
चंद शाखों ऐसी भी हैं जो सावन में आषाढ़ हुए,

एक भी  चिराग तन्हा गर तुफानो से टकराता हैं
मुझको कोई फर्क नही,कितने दरिया पार हुए,

किन हालातो से निकलकर हमने अलख पायी हैं
शमशानों से आग चुराकर,अंधेरो से दो चार हुए,

तमाम सूरज ,चंद अंधेरो से  जब हार गए
मेरे शहर में कितने दंगे फसाद हए,

किलकरियो को जब चिंगारियों ने दबा दिया,
बच्चों के खेल खिलोने दुनिया के ज़िहाद हुए

मेरी ही वतन परस्ती ने तुझे हिन्दोस्तां बनाया
तेरी दीवानगी में कितने 'पहलू' कितने 'अख़लाक़'हुए...!!!


Saturday 25 August 2018

ये मौसम क्यों नही बदल जाता ...!!!





ये धूप क्यों नहीं छट्ती ,

कोई बदरी क्यों नहीं उमड़ती .
कोई सावन क्यों नही बुलाता ,
ये मौसम क्यों नही बदल जाता ...

भारी हैं बहुत मुशकिल समय ,
उदास तू परेशां मैं .
बेचैनी सी दिल पे छायी,
बातो बातो में,आख छलछलायी .
यादो के साये मंडराते ,
बेबसी मे हमको डुबाते.
ये जो हैं वो काश नही होता ,
ना तू परेशा,न मैं रोता .
एक दुसरे में हम खो जाते ,
वो शुरुवाती लम्हे क्यों नही लौट आते ...

जागी जागी फिर राते फ़ोन पकडती ,
ना आख लगती ना जुबा थकती .
दूर से ही सही कोई साथ होता ,
रगों मैं खुशनुमा एहसास होता .
डरी -डरी अंगुलिया हिम्मत जुटाती ,
जुबा कहते कहते लड़खड़ाती .
गर्म साँसे फिर भारी हो जाती .
हाय फिर कोई दामन बचाता,
ये मौसम क्यों नही बदल जाता .......

Monday 20 August 2018

कितने करीब थे आज किस हद तक जुदा हैं...






कितने करीब थे आज किस हद तक जुदा हैं,
ना तुझको खबर है ना मुझे पता हैं...


जो सिर्फ आवाज़ से एहसास जान लेते थे
सुनाने को उनको अब चिल्लाना पड़ा हैं,

फ़ोन पे फ़क़द जुबा बोलती हैं और कान सुनते हैं
ऐसी गुफ्तगू से  ख़ाक मसला हल हुआ हैं,

तेरी बुलंदी तेरी हैसियत तमाम शहर पे हावी हैं
एक खत मैने भी तेरे बंगले में रख दिया हैं,

आदमी तन्हा घुट घुट के मर रहा हैं आज भी
जबके हर ओर क़यामत का काफिला हैं,

किसीने रात भर करवटे ही बस बदली हैं
अबके बरसात में ये घर कितना जला हैं,

लौट जाएंगे हम बस कुछ देर में खटखटाकर
तुमने कुंडी लगाकर जो कहना था कह दिया हैं,

कितनी मायूस और खामोश है ये मज़लिश
हमारा जुदा होना दुनिया पे कितना भारी पड़ा हैं...!!!

Saturday 18 August 2018

जुबा तुम्हारी जबसे नश्तर हो गयी.....


















परेशां ज़िन्दगी किस कदर हो गयी
जुबा तुम्हारी जबसे नश्तर हो गयी,


ज़िंदगी  की दौड़ ने चेहरा  मेरा सुखा दिया
उम्र 30 में जाने कैसे सत्तर हो गयी,

एक दौर से जो आवारा थी देर रात तक,
नादानियां सुबह से आजकल दफ्तर हो गयी,

दूरिया तो फ़ोन पे मोम सी पिघलती  थी,
नज़दीकियां अकड़ कर पत्थर हो गयी,

मरकज़  भी बंदूक से मरहम लगाता हैं,
गोया समझदारी सारी "बस्तर"हो गयी,

तेरे आसमान से नज़र आए जर्रा ,मुमकिन नहीं
चिराग हू गुरुवत का,हैसियत तेरी अख्तर हो गयी,

अम्मा आज भी तड़के चूल्हे पे रोटियां पकाती हैं,
बहुये घुघट में ही सारी,अफसर हो गयी.......!!!

Wednesday 15 August 2018

कैसे गुजरी रात याद नही रहता






कैसे गुजरी रात,याद नही रहता ,
हर सुबह मैं अपने साथ नही रहता ...


कुछ ख्याल आकर ख्वाबो को सजाते हैं ,
सोये हुये मैं कभी बर्बाद नही रहता ...

तेरे शहर में ये कौन सा मौसम हुआ करता हैं ,
तुम्हारे खतो में कभी जज्बात नही रहता ....

अपने ही आजकल जख्म दिया करते हैं ,
हर मुश्किल में,दुश्मनों का हाथ नही रहता ...

मत उलझाओ इसे मौलवियों पडितो के झगडे में ,
मज़हबो का मसला दिलो के साथ नही रहता ...

कहते कहते  कुछ रुक जाता हैं जफ़र
जब दिल गिरफ्तार हो तो जुबा आजाद नही .....

Friday 3 August 2018

हाँ मैं लिखता हूँ...




अनकही सी एक बात को,
दिल में गहरे दबे हुए जज़्बात को
मै लिखता हूँ...


दिन भर के विरोधाभाव से जब मैं भर जाता हूँ
कौरवो की महफ़िल में
कर्ण सा कुछ कह नही पाता हूँ,
जुल्म जब ताकत से गले मिलता है
सूरज जब पूरब में ही अस्त हो जाता हैं
तब खामोश खड़ी हर जुबान को
अपने पुरुषार्थ के सम्मान को
तुम्हारी धूर्त सब जीत में
अपनी सब मात को
मै  लिखता हूँ...


मज़बूरियों से जब हारने को होता हूँ
हथियार डाल कवच उतारने को होता हूँ
अंधेरे जब आँख मीच देते हैं
अपने ही जब हाथ खींच लेते हैं
स्वपन जब कोई जगाते हैं,
हौसले जब संध्या हो जाते हैं
मै चुप कुछ कह न पाता हूँ
मग़र सह भी ना पाता हूँ
तब एक मुशकिल भारी रात को
रूह पर भारी पड़े हालात को
अकेले लड़ते हुए साथियो के साथ  को
मै  लिखता हूँ.