Saturday 28 December 2019

जिंदा हो तो आदमी की तरह बात करो...






खुद से जिद करो,जहन से सवालात करो,
आदमी हो तो आदमी की तरह बात करो


लोग खीच खसोट कर ले जाएंगे,
अपनी हदो में अपनी हदो को बिसात करो,

बेरोजगारी और भूख का रोना मत रोओ,
थोड़ी मेहनत करो फिर बात करो,

एक बार जो तुम अपना आसमा ढूंढ लो,
उसे पाने को फिर दिन रात करो,

हाथ मिलाओ गले मिलो सलीके से,
इहतियाद से शहर में लोगो से मुलाक़ात करो,

सिर्फ वज़ू का नाम नही है सलह,
ईमान के रास्ते पे सफ़र हयात करो,

पहले ख़ुद हल पकड़ना तो सीख लो,
फिर फसल का इंतख़ाब करो.....

Monday 23 December 2019

हमे घायल जानकर, कई सियार निकल आये हैं...




मुश्किलो के बादल हैं,बेकशी के साये है,
हमे घायल जानकर कई सियार निकल आये हैं


तुम जुदाई के खौफ से मुझे डरा नही सकते
कई रिश्ते मैंने अपनी  जिद में दफ़नाए है,

दिल्ली के ताज में न जाने कैसा जादू हैं,
चींटियों के भी पर निकल आये हैं,

रोज का जिनसे दुआ सलाम मेरे मोहल्ले में हैं,
एक क़ानून से घुसपैठिये कहलाये हैं,

सूरज सूखेगा चाँद टूट कर गिरेगा,
लोगो ने इन वादों पे इलेक्शन करवाये हैं,

इन दफ्तरों ने जहाँ लोगो को रोब शौकत दी,
गरीब,किसान को बस चक्कर कटवाये हैं


Thursday 14 November 2019

उस मोड़ पर क्यो हमने अपना रास्ता बदल दिया....!!!






कई बार जो जहर हम दोनों ने साथ-साथ पीया,
चंद रोज की अनबन में तुमने जमाने को उगल दिया..

बेकशी ने जैसे तैसे बेक़रारी को जब समझा लिया,
नया बहाना बनाकर उसने फिर इरादा बदल दिया,

आज भी अपने फैसले पे हरसू पछताता हूँ,
उस मोड़ पर क्यो हमने अपना रास्ता बदल दिया,

तुम्हारा गुस्सा तुम्हारे जज्बात पर हावी था,
भीगीं आँखों से मनाया और लाल से मचल दिया

सारा शहर अंधेरो के साया में पागल बना रहा,
झूठ ने बड़ी चालाकी ने अपना चाल चल दिया....!!!

Friday 8 November 2019

वो एक मुस्कुराहट से सारी समझदारी लूट जाते हैं...







चट्टाने टूट जाती हैं समुन्दर डूब जाते हैं
कभी-कभी वो भी हमसे तबियत पूछ जाते हैं,


बहुत दिनों बाद गाँव आया तो एहसास हुआ,
झुर्रियों में सब शिक़वे शिकायत छुप जाते हैं

बिजलियों की सजिश या बादलो की शरारत हैं,
मेरे पुश्तें  भरी बारिशो में ही टूट जाते हैं,

मैं सदियों ख़्वाहिशों अरमानो को तसल्ली देता हूँ,
वो एक मुस्कुराहट से सारी समझदारी लूट जाते हैं,


जब मैं चुप रहूँ तो नेक हूँ शरीफ़ हूँ वतनपरस्त हूँ,
जरा सा मुँह खो दु तो बड़े लोग रूठ जाते हैं....

Sunday 3 November 2019

मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं....









मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं,
एक चिंगारी की कही आग होगीं,


मेरी हर बूँद में,इश्क़ का समुन्दर हैं,
प्यासा रख कर,तू भी कहाँ आबाद होगीं,

मत करो फ़ोन बारहां नंबर बदल-बदल के,
हमको-तुमको तकलीफें बेहिसाब होगीं,

खामोश देखता हूँ मैं तेरी बदगुमानिया,
कभी तो हद से पार मेरी बर्दास्त होगीं,

मेरे सच को तुम यू ज़िंदा दफना नही सकते,
एक रोज़ कब्रे खोद,फिर शिनाख्त होगीं,

उसे हो,तो हो के रहे घमंड अपनी दौलत पे,
ख़ाक से बनी थी दुनिया,रिस के फिर ख़ाक होगीं,

ग़लतफ़हमी का मट्ठा इतना जड़ो ने पी लिया,
अब नही लगता कि बस्तियां फिर शाद होगीं...

Wednesday 2 October 2019

सच लिख़ने की इस दौर में क़लम को ताक़त ना हुयीं...







दर्द में डूब के भी ख़िलाफ़त ना हुयी,
ना हुयीं हमें तुमसे शिकायत ना हुयीं..


रब्त उसके ने हज़ार बंदिशो पे मज़बूर किया
इतनी शर्तों पे हमसे मोहब्बत ना हुयीं,

हज़ार फ़ोन करो,लाख़ इल्तेज़ा, कऱोड नख़रे,
गोया कभी इतनी मेरी जान को आफ़त ना हुयीं,

देश परदेश में,तेरी उम्मीद पर मैं टिका रहा,
एक मासूम दिल की तुझसे हिफ़ाज़द ना हुयी,

नादान बेक़सूर टूट कर बर्बाद हुआ जाता हैं,
और क्या बाकी हैं ख़ुदा क्या अभी क़यामत ना हुयी,

घोसलें उजाड़ के जब गौरैया भी उड़ गयीं,
लाख कोशिश से भी गांव के घर मे बसावत ना हुयीं,

ईमाँ अपना बेंच के दुकाँ अपनी चलाते हैं,
सच लिख़ने की इस दौर में क़लम को ताक़त ना हुयीं....!!!


Friday 27 September 2019

तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ...






वक़्त बे वक़्त हर बात पें निकल आये आँसू,
तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ



एक हम थे जो ख़ामोश ज़हर पी  गयें,
तुमने जा-जा के लोगो को दिखायें आँसू,


सारी दुनियादारी जो शाम के अंधेरे में भूल गयें,
उन गुस्ताखियों ने कितने आँख रुलाये आँसू,


आँखे सुख़ गयी,रोशनी भी जाती रही,
तुम ना आये तो किसके लियें बचायें आँसू,


बात जो ज़माने से तेरे-मेरे जहन में क़ैद थी,
पल्को से जानो के सफ़र में सब कह आये आँसू,


बाखुदा नज़र -नज़र में क्या गज़ब फ़र्क हैं,
बंद हो गयी आँख जब तुमको नज़र आये आँसू...

Sunday 22 September 2019

तो लगा तुम आ गये......!!!







ठंडी-ठंडी जब हवा चली ,
तेज़ धुप में छा गयी बदली ,
तो लगा तुम आ गये ........


जब बादल हमे भिगाने लगे ,
रंग-बिरंगी तितलिया उड़ी ,
भवरे गुनगुनाने लगे ,
तो लगा तुम आ गये ........

शामे जब जवान होने लगी,
धड़कने बे -
इख़्तियार ,
ऑंखे परेशान होने लगी ,
खुशनुमा सहर ने जब रौशनी बिखराई ,
मुंडेर से झाकती हुयी किरन ,
खिडकियों से गुनगुनाती हवा आयी ,
तो लगा तुम आ गये ........

जब कोयल गीत गाने लगी ,
मोरनी झूम इतराने लगी,
मौसम की रंगत,
साँसो में खुशबू महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुदबुदायी

तो लगा तुम आ गये ........

वादी में जब कोहरे ने धुंध फैलायीं,
नन्ही मेमनी फुदक के अंदर घुस आयी,
अम्मा ने जब ठिठुर के,
सिगड़ी पे केतली चढ़ाई,
बातो में जब मुँह से भाप निकल आयी,
तो लगा तुम आ गये............!!!

Sunday 15 September 2019

वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....







कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
तेरे हरेक लब्ज़ को जिंदगी बना रखा हैं ,
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....


दौरे तन्हाई में वो साथ चलते हैं ,
मेरी थकानो में छाँव धरते  हैं ,
सारे जहां में चाहे खिज़ा छाये
वो फूल मेरे सिराहने महकते हैं .
उस एक आग को ख़ुदमे में दबा रखा हैं ,
कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
छुपकर बचाकर तुमने मज़बूरी के
जो पैगाम किये .
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये….

स्याह कितनी भी काली रात हो
मुशकिल कैसे ही हालात हो
एहसास वो मुझको भीगा देते हैं
एक रंग एक मूड बना देते हैं
मेरा सारा धन उन्ही मैं हैं
ये शेर सुख़न उन्ही मैं हैं
फ़क़द एक जिश्म दुनियारी निभाता हैं
जज्बात सारे दफन उन्ही में हैं,
कागज़ों के उस दौर में
कैसे कलम से खड़े तूफान किये,
टेलीफोन ना मोबाइल कोई,
उस कशिश उस तड़फ
को कैसे तुमने अल्फ़ाज़ किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...

तरक्की कैसे मंज़र पे हमे लायी हैं
जुठ की दुनिया दिखावे की शहनाई हैं
नज़दीकी आसान निबाह मुशकिल हैं
इस इश्क़ की राह मुशकिल हैं
जिस्म हैं जज़्बात नही,
हाथों में हाथ पर साथ नही,
कशिश की जाँच पे मोहब्बत नही पकती,
कोई लैला अब मिलने बात करने को नही तरसती
हर शै नसीब हैं हर मुश्क हासिल हैं
ये तरक्की गज़ब की क़ाबिल है,
जबके हम हज़ार दफे पढ़ते इतराते थे
कभी  दुक़ाते ,कभी सीने से लगाते थे
ख़त जो कभी मुसीबत भी बना जाते थे,
एक -एक लब्ज़ एक उम्र होते थे
कितने सारे मतलब छुपे होते थे
नादान हैं ये लोग अब क्या जाने
उस ख़ज़ाने को क्या पहचाने
कोई जब कभी याद दिलाएगा
ये दौर जरूर जान पायेगा
ये विरासत जो तुमने मेरे नाम किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...

Sunday 8 September 2019

मेरी क़लम से फिर इंक़लाब लिखाते क्यो हो....








फ़िज़ूल की बातों में सर अपना खपाते क्यो हो,
उलझने किसको नही इतना जताते क्यो हो,



गुमनामी के अंधेरो में खो जायूँगा कभी राख़ बनकर,
इतनी शिद्दत से मेरा नाम अपने साथ लिखवाते क्यो हो,


मुश्किल हैं मेरे साथ रहना मग़रूर बेकार हूँ मैं,
फिर नंम्बर बदल फोन की घण्टियाँ बजाते क्यो हो,


यहां भीड़ हैं गंदगी हैं लोगो को तहज़ीब नही,
इतना परेसा हो तो इन बस्तियों में आते क्यो हो,


गर कज़ोर गरीबो मज़लूमो का कोई वजूद नही,
हमारे जुलूसों लाल सलामो से इतना डर जाते क्यो हो,


जानते हो,मसले मंदिरो मस्ज़िदों के कुछ नही देने वाले
फिर वोटरों को हर बार झुठ बहलाते क्यो हो,



जबके तुमने शहादत "आज़ाद "भगत की भी जाया की
मेरी क़लम से फिर  इंक़लाब लिखाते क्यो हो.....!!!

Thursday 5 September 2019

खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही....





मुझ पर जाने कौन सी बेक़रारी रही,
खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही,


तुमने कई बार मुझकों ठुकरा दिया,
एक उम्मीद तेरे इंतज़ार में क्यो ठाड़ी रही,

मेरे घर मे रौनको का बसेरा रहा,
बेटियां मेरी आँगन की दुलारी रही,

सिर्फ औरो की चोरियो पे आवाज़ उठाते हैं,
बस इतनी बाकी हममें वफ़ादारी रही,

इतने आँसू मै खामोशी से पी गया,
उम्र भर मेरी जुबान ख़ारी रही...

Sunday 28 July 2019

नेताजी को सिगड़ी का पुख्ता इंतेज़ाम जारी रहा....





देर रात तक नुमाईश में प्रोग्राम जारी रहा,
जनता मफ़लर,पंखी में सिमटती रही,
नेताजी को सिगड़ी का पुख्ता इंतेज़ाम जारी रहा,

लोग स्टार नाईट को तरसते रहे देर तक,
उनका चुनावी पैगाम जारी रहा,

मौत का कुँआ हो या नटनी का बैलेंस,
भूख़ के वास्ते ज़िन्दगी का डांस जारी रहा,

कौनसी गली में किस मुँडेर विकास दुकाँ है,
अपनी नाकामियां गैरो पे इलज़ाम जारी रहा,

वोट के चक्कर में नेता,अफसर पोस्टिंग में फंसा है,
भीड़ को उलझाने का काम जारी रहा,

सिपाही की पेंसन पे पल रहा आधा पहाड़,
कमुली खिमुली परुली या और नाम जारी रहा...

Monday 22 July 2019

मर ही ना जायें तो अब, क्या ख़त में लिखा करे....





हम मोहब्बत करे वो दिल्लगी किया करे ,
किसी के साथ ऐसा भी ना खुदा करे .....


हर बार के जवाब में दिल तोड़ रहे हो ,
मर ही ना जायें तो अब, क्या ख़त में लिखा करे....

पास आकर जाना हम कितने दूर हो गये ,
गोया इश्क में जरा-जरा फासले रखा  करे ...

आज की रात सितारे मेरे कदमो में हैं,
तुम साथ हो तो,औरो का क्या करे....,

वक़्त के साथ,रिश्तों की नरमी जाती रही,
इश्क़ में ख़्वाहिश,कल पर ना छोड़ा करे......

Saturday 20 July 2019

तेरे मेरे प्यार की निशानी की तरह







सुबह तक महकती रही,मुझमेँ रात की रानी की तरह,
मुझपे गुज़रना था जिसे जवानी की तरह..


बहुत खुश थे जिससे पीछा छुड़ा के अमीर,
याद रहा वो शख्श दादी की कहानी की तरह,

एक शमा अकेले तूफ़ान से लड़ती रही,
बुतो में खोजते रहे लिखा था जो पेशानी की तरह,

मेरी बरबादियाँ कुछ काम तो जरूर आयीं,
बच्चों को सुनाते हैं गाँव वाले कहानी की तरह,

जिक्र भी करु तो छलक पड़ता हैं,
पलको पर जो तैरता रहता हैं पानी की तरह,

आज की रात को उम्र भर साथ हमारे चलना हैं
तेरे मेरे प्यार की  आख़िरी निशानी की तरह

Sunday 14 July 2019

आँसू






चूड़ी काज़ल कंगन और ऑंसू,
बारिश कोहरा बादल और आँसू

पीपल पतझड़ जेठ दुपहरी,
झूले साथी सावन और आँसू,

मेरी पीड़ा मेरा दुखड़ा बोझ भयंकर,
मिश्री बातें तेरी जियरा सदल और आँसू

लकड़ी गठ्ठर,रोटी लून सक्कर
गैय्या ग्वाले,बन्सी जंगल और आँसू

फावड़ा कुटला ,खेत का टुकड़ा,
मुठठी फ़सलें,भतेर दंगल और आँसू,

गांव पनघट हल्ला बचपन
परदेश तन्हा कमरा बंजर और आँसू

दरिया पर्वत भूख़ बेकारी लाचारी
आक्षित आखर ऐपण चंदन और आंसू

Wednesday 10 July 2019

मैं आज भी ऐसे तेरा वचन निभाता हूँ....








चिता की अग्नि में हर शाम मौन लेट जाता हूँ
मैं आज भी ऐसे तेरा वचन निभाता हूँ,

थक जाते हैं सब पुतले दिनभर की भेड़चल से,
मैं इस तडफ़ की अलख जगाता हूँ,

कोई सूरज अपने ताक़त में जब मग़रूर दिखा,
बहुत सादगी मैं उसको दिया दिखता हूँ

जमाने भर की जिलालत से तो लड़ भी लेता हूँ,
घर आकर तुम्हारे मसलों से हार जाता हूँ,

दुसरो की गलतियों में बहुत चीख़ता चिल्लाता हूँ,
अपनी गुस्ताखियों बड़े सऊर से पर्दे लगाता हूँ,

शौक से तुम जॉगिंग पर टहलने जाते हो,
एक ध्याड़ी मज़दूरी पर दिनभर पसीना बहाता हूँ,

तुम पत्थरो की बस्तियां बसाते हो,
मैं गाँव की काली मिट्टी से सोना उगाता हूँ

Monday 8 April 2019

रात अभी बाकी हैं,कोई सितारा टिमटिमाया हैं..

दर्द में डूब कर कुछ करार आया हैं,
जुबां पर सच पहली बार आया हैं...


मंज़िले अभी दूर हैं करवा बढ़ता रहे,
बिजलिया गिरी नही,बस अंधेरा सा छाया हैं,

हौसला न तोड़ना,हाथ अब ना छोड़ना,
रात अभी बाकी हैं,कोई सितारा टिमटिमाया हैं,

घर हमारे छीने हैं,सकुनो चैन तबाह किये,
इन हसरतो ने हमे कितनी आँख रुलाया हैं...

कौम कोई हो,हुकूमते कैसी रहे,
मज़दूर किसान बस, बोझ ढोता आया हैं,

तुम अग़र यकीं करो,चाँद तारे उतार दू,
हमने अपने हौसलों को कितना दबाया हैं..

Thursday 21 March 2019

कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ.....!





कुछ अनकही बातों को बोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,


हरेक लब्ज़ में लम्हो के समुन्दर है,
जाने कैसे कागज़ में सब उड़ेल देता हूँ,

किस नकाब में कौन सा चेहरा पोशीदा हैं,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,

हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,

क़लम कभी नये उनमान को जब जम जायें,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,

खुद छुपा रखता हूँ तुम्हे सब से,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,

Friday 1 March 2019

टूट-टूट कर कई बार जुड़ा हूँ मैं......








बड़ी मुश्किल से इस बार खड़ा हूँ मैं,
टूट-टूट कर कई बार जुड़ा हूँ मैं..


जहाँ हूँ मैं बस तबाही हैं बर्बादी हैं,
लोग ये भी कहते हैं बहुत कर्मजला हूँ मैं,

बनाने वाले घर के,कबके मुझे भूल गये,
नींव का पत्थर ख़ाक में दबा हूँ मैं,

तुम एक बार देख भी लो तो बरस पड़े,
थाम कर बदलो को कबसे खड़ा हूँ मैं,

आँख में भरलो,ख्यालों में जवान करो,
एक पल की नज़दीकी,सदियो का फासला हूँ मैं,

अगर न चाहो,तो यू ही घुट मारने दो,
तुम्हारी सारी इल्तज़ा,फरियादों से बड़ा हूँ मैं,

अब जहाँ तुम हो,वहाँ नही हूँ मैं
जहाँ थे तुम अब भी वही पड़ा हूँ मैं....


Sunday 24 February 2019

आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती






आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती
सिर फोड़ने से अकले नही बदला करती,


कई बार मैंने किसानों को सूली पे रखके देखा हैं
हमारे गांव की खुदगर्ज़ फसले नही बदला करती,

लाख बार हज़ार कोशिस से जाहिर हैं
वजह बदल देने से वसले नही बदला करती,

तेरे जाने के बाद अकेले ही उसी जग़ह वक़्त बिताता हूँ
सूद अता करने से ही असले नही बदला करती,

दगा देता हैं वो बहुत सजा सवार के मासूमियत से,
गर्म जोशी से मिलने मुलज़िम की दफ़्हे नही बदला करती,






Sunday 10 February 2019

इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा...






इश्क़ की गहराई में उतारने में वक़्त लगा,
टूट गया मगर बिखरने में वक़्त लगा...


तूने मेरे नसीब में डूबना लिख तो दिया,
बीच मझधार मगर पाँव धरने में वक़्त लगा,

जब उसने कई बार मुझे  झूठ पीला दिया
मेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा,

तुम भी थे वक़्त भी शाम और मय भी,
इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा,

किनारे पर ही जब तमाशे दुनिया के देख लिए
मुझे फिर दरिया में उतरने में वक़्त लगा,

ना जाने किस शक पे तुम घेर के मार दो,
मौका ए हालात में घर से निकलने में वक़्त लगा.....

Wednesday 30 January 2019

सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं....






सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं,
रात काली हैं या चाँद ने अंधेरे बिछायें हैं,


कुछ मग़रूरओ  के हौसले इतने बुलंद हैं,
रोशनी के डर से कितने सूरज बुझाये हैं,

खेत मेरे ,दो बूंद पानी को तरसते रहे,
शेयर बाज़ार से आप कौनसी अच्छी ख़बर लाये हैं,

बदन से आज भी मिटटी की भीनी बू नही जाती,
कई बार किसान तुम्हारे जुठ वादों में नहायें हैं,

कोई साज़िस तुम्ही ने अलबत्ता करी होगी,
जबकी सारे खंज़र हमने ख़ुद ही दफ़नाये हैं,

वतन पे मेरे भीड़  का जुनून हावी है,
इलेक्शन से ये फ़सल काट के लाये हैँ,

तेरे आगे बस मेरा वश नही चलता,
शिकायत तुझे हैं मुझे बस इल्तिजाये हैं,

तुम्ही ने अंधेरों में मुझें बरसों बरस धकेल दिया,
हमने अपनी किताबो में कई चिराग़ दबायें हैं...

Friday 18 January 2019

जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं.....








तुम गांडीवधारी हो या तुम्हे ख़सारा हैं
हम दांव खेला चुके,अब समर तुम्हारा हैं,


तुम फ़क़द तमाशा देखो,फब्तियां उड़ाओ,
जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं,

कई रोज़ की बरसात में जब आँख सुख जायेगी,
तब समझ आयेगा किसको गले से उतारा हैं,

तुम अपनी दुनिया सजाओ घर बनाओ,
बस कभी कभार की मुलाकातों में अपना गुजारा हैं,

शुरुवाती मोहब्बत में बहुत हमने चाँद तारे तोड़ लिये
कश्तियां सम्भाल लो बस आगे तेज़ धारा हैं,

धुएँ  के छल्ले उड़ाओ, मछली बन खूब इतराओ,
मगर जालिम बड़ा वक़्त का बेरहम मछवारा हैं,

और क्या ज़िन्दगी का हासिल हैं हरशु देखा हैं
जबकि में जमीन पे सोता हूँ सारा जाहांन हमारा हैं,

इतनी  सिद्दत से चाहा कि सब्र ने बगावत करदी,
हज़ार बार तुम्हे ख़त लिख कर खुद फाड़ा हैं,

Tuesday 15 January 2019

दोस्त बहुत हैं यहाँ कोई यार नही....!!!





किसी के आगे अब खुलने को हम तैयार नहीं,
दोस्त बहुत हैं यहाँ कोई यार नहीं,


मुश्किलों का समुन्दर हैं,तकलीफों के पहाड़ हैं,
इस ताल्लुख़ से उबरने के कोई आसार नहीं,

हाथ मेरे ख़ाली सही,आँखों में क़यामत हैं,
ख़ामोशी भी इबादत हैं,नज़दीकी ही प्यार नहीं,

बहुत सिखाया ज़िन्दगी के तजुर्बों ने
दुश्मन बना लो मगर कोई राजदार नहीं,

मैं ही प्यासा हूँ और मुझी में समुन्दर हैं,
ज़िन्दगी तुझ_सा कोई अय्यार नहीं,

किसी डाल पे फूल खिले कोई आँगन खाली हैं
मुझे तेरी फ़ैसलों पर अब ऐतबार नहीं,

तुमने क़िताबों को मुलज़िम बनाया,लोंगो को भड़काया
मेरे हाथ में क़लम थी कोई तलवार नहीं,

Monday 7 January 2019

अंधेरे ही फैलाने को यहाँ उजाला निकलता हैं.....







यहाँ हरेक सुहागिन का बदस्तूर हलाला निकलता हैं,

दून से दवरा पहुचते परियोजना का दिवाला निकलता हैं,


कौन सा दामन पाक हैं किन हाथों पे क़लम रखूँ ,

मदो की बंदरबाट में हर चेहरा काला निकलता हैं,


पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की कितने घुट्टिया पी गये,

फिर भी हर फ़ाइल में हमारे लिए मसाला निकलता हैं,


रिबन काटने फ़ोटो खिंचाने की बस ये भीड़ हैं,

मंत्री जी के जाने भर से पंचायतघर का ताला निकलता हैं,


इन पहाड़ो पर आर्मी के एहसान बहुत रहे हैं,

रोजग़ार को हर बरस सिर्फ भर्ती का हवाला निकलता हैं,


अपनी जवानी तो हम शहर की चिमनियों में फूक आये,

बस बुढ़ापे में वापस घर को पहाड़ वाला निकलता हैं,


एक और जाँच,एक और मुह नोटों को,खुल जाएगा,

फ़क़द अंधेरे ही फैलाने को यहाँ उजाला निकलता हैं,



Friday 4 January 2019

बहुत गरूर था हमे,आसमानों में आशिया बनाना था....






बहुत गरूर था हमे,आसमानों में आशिया बनाना था,
मगर किश्मत में टूटकर पंख,बस फड़फड़ाना था,



लाख मुसीबतों को जीत,जैसे ही मंज़िल को पाना था,
तमाम कमज़ोरियों को उसी वक़्त रास्ते पे आ जाना था,
सिर फोड़े,दुनिया से टकराये,कितने घूट ज़हर निगल आये,
हाथो में जो ना था,उसे मिलकर भी छूट ही जाना था,
कौन सी नाराज़गी थी जिसका हल दो जहां में नही,
बस एक बार तुम्हे प्यार से बुलाकर गले लगाना था,
अभी लगा था बौर और तुमने हल चला दिया,
थोड़ी देर में किसान की मेहनत,आढतियों का खज़ाना था,
कौन अब अज़ानों के फैसलों का इंतज़ार करता,
जिन्हें जुठ पता था उन्हें जिंदा ही दफ़नाना था,
तुम क्यो हर शै में फलसफ़ा ए कुदरत ढूंढते हो,
गोया ऐसे ही तो जीना था ऐसे ही मर जाना था...