Friday 28 December 2018

सब शिकायते एक खत में लिख कर बक्शे में बंद कर देते हैं....





सारी तकलीफ़ें सारी उलझनें ख़त्म कर देते हैं,
सब शिक़ायतें एक  ख़त में लिख़

उन्हें बक्से में बंद कर देते हैं.....



फिर न तुम ज़िक्र करो कोई
ना मैं कोई तंज क़सू
खोल कर गाँठे 
सारी,
सारी उधेड़ सब तुरपन 
बुनूँ,  
तुम प्याज़ काटो,मैं लहसुन छिलता हूँ,
दाल में छोक़ा दो तुम,मैं चावल बीनता हूँ
बराये-बहाने किचेन में साथ बातें चंद कर लेते हैं
सारी शिकायते बक्से में बंद कर देते हैं.....

ये तो तेरा-मेरा रोज़ का मसला हैं,
जंगे ज़िन्दगी में ,
ये कहा सुन ही तो असल असला हैं,
यूँही खट्टे मीठे तजुर्बों की रवानी हैं,
हम्हे तो बस यूँही अब निभानी हैं,
थोड़ा तुम क़दम बढ़ाओ,
मैं कुछ मान जाता हूँ
जरा -सा मुस्कुरा दो तुम जो
मैं झट गले लगता हूँ
तूफ़ान अभी बड़े आने वाले हैं
हमें कितने लम्हें निभाने हैं,
चलो हाथ पकड़ कर फ़िर
सब्जी लेने चलते हैं,
स्कूटी पर दूर तक टहलते हैं,
नई पिक्चर के टिकट लाता हूँ,
पिज़्ज़ा और चोको लावा केक खिलता हूँ,
चलो मॉल चलके घरके लिए
नयें पर्दे पसंद कर लेते हैं,
सारी शिकायते बक्से में बंद कर देते हैं.....

Sunday 16 December 2018

तेरे जाने के बाद बहुत काम आये आंसू .....






कभी रोके,कभी पोछे,कभी छुपाये आँसू ,
तेरे जाने के बाद बहुत काम आये आँसू ,


कभी सोचा भी के ख़ुशी से तुम्हे जाने दे,
लगे जो गले तो खुद ही उभर आये आँसू ,

एक हम थे जो खामोश ज़हर पी गये,
उसने तो जा जा के लोगो को दिखाये आँसू,

सारी दुनियादारी जो सांसो के तूफान मे भूल गये,
उनको नादानियों ने कितने आँख रुलाये आँसू,

आँखे गहरा गयीं रोशनी भी जाती रही,
तुम ना आये तो रास्तो ने सुखाये आँसू,

हैरान परेशान तेरे भोलेपन पर हूँ,
सुख गयी आँख जब तुमको नज़र आये आँसू

शहर के झूठ में एक नकाब हमने ओढ़ लिया,
वो कौन था जफ़र किसने तेरी याद में बहाये आंसू ..

Sunday 9 December 2018

मेरी हसरतो को कुचलकर शहनाईयां बजाना..







चाँद दिखाये मीरा तुम ज़हर पिलाना,
मेरी हसरतो को कुचलकर शहनाईयां बजाना..


अपने अंजाम में कुछ रोमानियत तो हो,
हल्दी के हाथ से सज धज तुम मेरा गला दबाना,

तुम तब भी मजबूर थी,अब भी मजबूरिया रही होगी
मतलब निकल जाये तो तुम फ़ोन भी मत उठाना,

मैं चुप चट्टान बनके समुन्दर के थपेड़े झेल लूंगा,
लोगो को जा जा के तुम अपने अश्क दिखाना,

चाहे अपने रिश्ते में कितनी गाँठे बँधी रही,
बहुत ईमानदारी से मग़र बेवफ़ाई निभाना,

रंग बदलकर क्या खूब जुबान बदली हैं,
क़यामत हैं उसका यूँ खुदको बेकसूर बताना,

आजकी शाम साक़ी ने कसम खिलाई हैं,
पीयू न पीयू मगरचे जरूरी हैं जाम में आंसू मिलना,

टूट भी जाऊ चाहे बर्बाद इस राश्ते पर होउ,
कुफ्र हैं जफ़र उसको कभी ग़लत बताना,

Thursday 6 December 2018

शाम से दिल में सुलग रहा कोई....!!!






शाम से दिल में सुलग रहा कोई,
बुझती हुई लकड़ियों में पक रहा कोई,


हज़ार बार उम्मीद दम तोड़ती रही हैं,
फिरभी दस्तक पर सज रहा कोई,

यू तो कबसे रोना शिश्कना छोड़ चुका हूं,
मेरे सब्र को बेसब्री से तक रहा कोई,

ग़ज़ब की बेचैनी और दूर तक हैं सन्नाटा,
और शर्मा के मेरी बाँहों में सिमट रहा कोई,

जबके खुदको तेरे मुताबिक़ बना लिया हैं,
अपनी बातो से ही पीछे हट रहा कोई,

कोई आरज़ू न कोई ख्वाहिश हैं बाकी,
फिर भी उम्मीद बनकर दिल में बस रहा कोई,