Sunday 25 February 2018

इन घटाओ में एक ताबीर लिखी हैं ..

लैला लिखी हैं और हीर लिखी हैं
इन घटाओ में एक ताबीर लिखी हैं

कितने ही मज़लूम दम तोड़ चुके हैं
इन फुटपाथ पे गरीबी की तश्वीर लिखी है,
कविता और गीत तो बस शौक हैं तुम्हरा
मैंने ग़ज़ल में अपनी पीड़ लिखी हैं
हवाओ के मानिंद हैं मेरी ज़िंदगी
मेरी लकीरो में कौन सी तकदीर लिखी हैं
ये कलाम जो कमजोर पड़ी हैं इन दिनों
इसी ने इस जमाने की तारीख लिखी हैं