Monday 29 December 2014

तुम्हारे दिल मैं कसक वही हैं इधर भी वही इरादा मेरा....

तुम्हारे दिल मैं कसक वही हैं इधर भी वही इरादा मेरा
तेरी आँखे मचल रही हैं बेक़रार मन नादां मेरा

मिले थे जबसे नयन तुमसे दिल हैं जोगी बावरा सा
ये कसक मेरी हई न पूरी हैं जुनून आधा मेरा

होंगे बहुत सारे प्रेमी तुम्हारे मुझसे बेहतर मुझसे अच्छे
सच कहूँगा जान तुमसे एक फूल सा दिल सादा मेरा

एक हैं मंदिर एक ही मूरत और कोई ना हमको जचता
तू ही शिव हैं तू ही सूंदर तू ही मोहन राधा मेरा

Thursday 20 November 2014

वही सुरूर वही खलिश वही बेख्याली हैं

वही सुरूर वही खलिश वही बेख्याली हैं
आज फिर दिल ने एक उम्मीद पाली हैं

कई रोज़ से किताबे रोशन हैं देर रात तक
एक बार फिर किश्मत आजमानी हैं

खोदते हैं हम दोनो मिलकर कई कब्रे
चंद सालो मैं सादिया दफनानी हैं

गुज़र चुके हैं कई साल इसी सफ़र मैं
कुछ लोगो ने रास्ते ही मंजिल बनाली हैं

एक चाँद कल रात आँखों मैं उतरा था
सुबह से दिल पर बौझ भारी हैं

बुला बुला कर कई चिराग बुझ गए गांव के
शहर की रौशनी बड़ी बेगानी हैं

नया रंग ओढ़ के लौट तो आई हैं बहार
ज़फर सारी चालाकी जानी पहचानी हैं

Tuesday 18 November 2014

प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं ...

बारिशो की बूदो का क्या गज़ब फ़साना हैं
प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं

तुम्हारे ही नखरे हैं तुम्हारा ही बहाना हैं
कल हो न हो आज तुमने अंगुलियों पे नचाना हैं

दरिया रुक नही सकता आसमा झुक नही सकता
दुनियादारी तो तुम्हारा सब बहाना हैं

हूर की सी सूरत हैं मिश्रियो सी बाते हैं
आंख भी नशीली चाल तो रिन्दाना हैं

तौबा इस दुनिया का ये भी क्या रिवाज़ाना हैं
अमीरे शौक के जलशे हैं हमारी भूख को एक दाना हैं

क्यों मैं वक़्त की दौड़ में पीछे रह गया
क्यों हिम्मतो के आगे बदकिश्मती को आजाना हैं


Thursday 13 November 2014

आग से पानी बनाता हूँ

आग से पानी बनाता हूँ
मैं उसको आजमाता हूँ

बहुत बनके कलंदर फिरता हैं
इधर भेजो आईना दिखाता हूँ
ख्वाबो की राख में चिंगारी दफ़न हैं
कलेजा जलता हैं जब हाथ लगाता हूँ
कश्तीया छोड़ भाग जाते हैं
मैं तुफानो को बुलाता हूँ
कम्जर्फी की जब भीड़ देखता हूँ
मंदिरों से लौट आता हूँ

Thursday 16 October 2014

रात भर हम कफ़न में खुदको समेटते रहे,

रात भर हम कफ़न में खुदको समेटते रहे,
गाँव वाले शहर से  बेटे की राह देखते रहे

रिश्तो की गर्मी तो कबके टूट चुकी थी,
यादो में बैठ कर अक्सर हाथ सेकते रहे.
लोगो ने जमीं से सोना पैदा किया
जिनकी नज़र चाँद पे थी वो आसमा देखते रहे
बेरुखी तमाम तितलियों की साजिश थी,
नादान हम तमाम उम्र जाल फेकते रहे
खाली जेब भरकर अशर्फिया रोबदार बन गयी
दोस्त जो रोज़ थोडा थोडा इमान बेचते रहे
रब्त सब रिश कर कबके जफ़र जाया हुए
हम क्यों उनके  जाने को रोकते रहे...


Sunday 5 October 2014

रात क फरिश्तो ने सुबह के काले सवेर देखे...

आसमानों की बुलंदिया देखी,बेबसी के अंधेरे देखे,
रात क फरिश्तो ने सुबह के काले सवेर देखे...

फितरते बदलती हैं जरूरते ढलती हैं
दो पल के फासलों में सदियों के फेरे देखे

इन बेकस हालातो में दुनियादारी जायज़ हैं
तूने मेरी मुश्किलें देखी मैंने रंग तेरे देखे

Friday 26 September 2014

तीर सारे मेरे तरकस के बेकार गये

तीर सारे मेरे तरकस के बेकार गये,
हम दीवाने आकर इस पार,क्यो उस पार गये,

रौशनी के सौदागर जुगनुओ से हार गये


साथ में कश्ती साहिल को पा भी जाती
तुम तो हमको मझधार मैं उतार गये,

वो मुसाफिर जिनकी नज़र चाँद पर थी
कदमो तले कितने चिरागों को मार गये,

गाँव में जब जब आमो पे बौर लगे
चचा शहर में दो चार पेटी उतार गये,

बंद खिड़की दरवाजों में मैंने खुद को छिपा लिया
ग़रीबी में ऐसे कितने ही त्यौहार गये,

उधर में जिंदगी बनाने में मुशरुख था,
इधर तुम पीछे,ज़िन्दगी उजाड़ गये,
गाँव में कितने अपने स्वर्ग सिधार गये,

मेहनतो की नीद मेरी शामो पर भारी थी
आराम की रोटी,नीद की गोलियों में उतार गये,
कल सितारों की महफ़िल से क़तरा ज़मी पे गिरा ,
हम नींद  में ही अपनी दूनिया उजाड़ गये।

Friday 19 September 2014

मुझे कतल करने को खंज़र क्यों माँगा

मुझे कतल करने को खंज़र क्यों माँगा
प्यास इतनी सी थी तो समुंदर क्यों माँगा

में इन्कलाब हू आवामी दिलो में बसता हूँ
मुझे मिटाने तो मेरा सर क्यों माँगा

जिसने हारकर दुनिया जीत भी जीत ली थी
मांगना था तो पुरुराज मागते सिकंदर क्यों माँगा

बुनियाद रखी हैं लाशो पर कौमी दंगो ने,
अहले सहारनपुर मिरे खुदा को ऐसा घर क्यों माँगा

दोनों जहान मेरे,मैं ज़ा भी तुमपे निशार करता हूँ
फूल भी मांग सकते थे तुमने नश्तर क्यों माँगा

जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
हैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...


Thursday 14 August 2014

सारा समुंदर भी पी सकता हू मुझे प्यास इतनी हैं.....

मत पूछ इस बेक़रार दिल को तेरी तलाश कितनी हैं,
सारा समुंदर भी पी सकता हू मुझे प्यास इतनी हैं

कितनी आँखों से सपने, कितने मुह से निवाला छिना हैं
आज के दौर में दोस्त दुनिया बदहवास कितनी हैं

जिस पेड़ की छाल पर खुरोच कर लिखा था तुमने नाम
पूछता हैं वो तुझसे बिछड़कर उदास कितनी हैं

हरेक राह में वही मंजिल वही साथी तलाशता हैं
तेरी सोहबत ,तेरी चाहत इसको खास कितनी हैं

इन दंगो में हमने चोटे गहरी दिलो में खायी हैं
सियासत ऊपर से गिनती हैं शहर में बस लाश कितनी हैं

तेरी तशवीर जड़ा लोकेट गले से बांध लिया हैं
नादाँ समझता हैं तू धडकनों के पास कितनी हैं

देर रात तक जागना,गज़ले कहना,देर सुबेरे उठाना
गोया शहर में चंद लोगो की जिन्दगी बर्बाद कितनी हैं...


Friday 8 August 2014

दुनिया के सवालो में फस गया जफ़र किस कदर.....

बहुत करली सुबह शाम वही रोज की जद्दोजहद,
दुनिया के सवालो में फस गया जफ़र किस कदर

ये कौन सी कालिख गोया तक़दीर पर अमादा हैं,
कितना खपाऊ सर,फिर भी हाथ मेरे खाली फ़कद

यू तो तम्मनाओ का होता रहा हैं क़त्ल बारहा
अबकी बार साहिब मगर उसने करदी हद,

तेरे बाद रोज ही पिया किया मैंने जहर
बस एक बार जो तुम होठ पे रख गये शहद

निचोड़ कर सारा रस तो में पी ही गया
क्या करोगे लेके वापिस तुम अपने ख़त

ये चुभन ये घुटन ही हकीक़त हैं और क्या
ख्वाब तो हमने भी हसी देखे थे बहुत

रात भर इन अंधेरो को जफ़र सुनाता रहा दास्ता
इनके आंसू पत्तियों से ओस बन गिर रहे अब तलक....

Thursday 31 July 2014

ये सब मेरी मज़बूरी हैं......





ये संगदिली बेरहमी सब मेरी मज़बूरी हैं,
आग जिन्दा रखने को चिंगारी जरुरी हैं,

एक रोज़ पत्थर पिघलेगे सितारे बरसेगे
रुखसार मेरा बेरंग सही हलक बहुत कस्तूरी हैं,

उन्ही का निकाह झूठा निबाह फरेबी हैं
जिनकी आंखे सच्ची मग़र माथा सिंदूरी हैं,

अल्लाह अब ये कैसी मेरी मज़बूरी हैं
उसकी जुबा कटारी और आंखे बहुत अंगूरी हैं,

बस एक आह मेंरी,कदम तेरे लौट जायेगे
आज भी अपने बीच जाना फ़कद इतनी दूरी हैं,

तुम मुझे मिले नही गले कोई क्या लगे
ईदी मुझे मिली नही ईद मेरी अधूरी हैं,

जो भी था कभी,धीरे धीरे जाया हुआ
कहना सुनाना तो जफ़र बस दस्तूरी हैं,
आग जिन्दा रखने को चिंगारी जरुरी हैं....

एक दिन वो पूछेगे एक दिन वो समझ जायेगे .

यादो में चुपके से हमको गुनगुनाएगे ,
एक दिन वो पूछेगे एक दिन वो समझ जायेगे .

प्यार तो बस प्यार हैं ,बेमानी हैं सब तकरीरे ,
तुम हारो ना हारो हम जीत ही जायेगे ..
.
दिल जब घबरायेगा,रंग चेहरे का उड़ जायेगा ,
आह भर कर मेरी तश्वीर से लिपट जायेगे ..

संग दिली में काट तो दो तुम आस की हर डाल को,
उम्मीद के पंछी फिर भी, मगर घोंसला बनायेगे .

सारी गर्मी की छुट्टी जिसने हसाया सुबह शाम ,
लौटते वक्त वही जी भरके रुलायेगे .

Wednesday 30 July 2014

आओ फिर बारिशो में खेले

आओ फिर बारिशो में खेले
बिजलियो से आँखे मिलाये
एक बार सबकुछ भूल जाये....
मौसम ये नशीला बड़ा हैं
कबसे अपने पीछे पड़ा हैं
उतारो ये शिकवो शिकायतों के चेहरे
तोड़ कर सारे पहरे
दरवाजों से ये जाले हटाये.....

हमने ये कैसे जिस्म पहन लिए
कभी जो बाहों में आकर ही
सब भूल जाते थे
हमारी ही बाते दुहराते थे
आज मनाये नही मानते
चलो इन फरेबी दिलो को
कुछ कुछ याद दिलाये.......


Sunday 27 July 2014

ख्वाब हमारे कच्चे हैं नीद हमारी आधी हैं..........

ख्वाब हमारे कच्चे हैं नीद हमारी आधी हैं
में भी तुम भी जाना हालातो के अपराधी हैं
किस घडी में हमने तकदीरे लिखवाई थी
इस नुक्कड़ पे मौत हैं उस गली में बर्बादी हैं
ये दुनिया  तो एक मृत तर्षाना हैं प्यारे,
दुःख  बस अपने,खुशिया सारी मियादी हैं
एक हैं आंसू अपने एक से अफ़साने हैं
मैं भी तुम भी सारे एक डगर के साथी हैं
तू अधूरी मैं अधुरा एकदूजे बिन हैं
साथ हमारा जैसे दिया और बाती हैं
कितने बिछुड़े कितने तूफा हमने देखे हैं
आंख हमारी पत्थर जिगर बड़े फौलादी हैं



Saturday 26 July 2014

राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में

राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में

घोसले उजाड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में

उसकी मौत ने इंकलाब को पैदा किया
कुछ आग बची रह गयी थी राख़ में,

गले भी मिलता हैं मैं खजर निकल लेता हूँ
ये कौन ज़हर घोल रहा हमारे दिमाक में,



राजदार ने मिलादी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में

घोसले उजाड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में

उसकी मौत ने भी इंकलाब पैदा किया
कुछ आग बची रह गयी थी राख़ में,

गले भी मिलता हैं तो खजर निकाल लेता हूँ
ये कौन ज़हर घोल रहा हमारे दिमाक में,

बाखुदा ये दिन भी था हमारी किश्मत में,
हाथ जो तुमने रख  दिया मेरे हाथ में

मैं भी तुमको लूट के विलायत भाग जायूँगा
तुम उलझे रहो मज़हबी दंगे फसाद में

जिक्र तुम्हारा हो तो खुद सर झुका लू
तूने क्या छोड़ा हैं जो बोल दू मैं जवाब मे,

तुम कही मिल भी जाओ तो मैं छुप जाता हूँ
लुत्फ मिलता हैं अब हमे इसी प्यास में



Wednesday 23 July 2014

एक ही ठोकर को हम उम्र भर सँभालते रहे

दोस्त बन बन के लोग दुश्मनी निकालते रहे
एक ही ठोकर को हम उम्र भर सँभालते रहे

 गोया बार बार हम भी कोशिशे करते रहे
वो भी माशाल्लाह बारहा गलतिया निकलते रहे
कोई जोहरी की सी नज़र से हमे देखेगा
कई सदिया हम ये हसीन ख्वाब पालते रहे
लोग अंधेरो में तारीख लिख के चल दिए
हम धीमी आंच पे अपने चावल उबालते रहे
फसले हमारे गाँव की सब शहर चली गयी
लोग खाली पेट ज़मीन की कमिया निकालते रहे

Sunday 20 July 2014

तुम पनाह न देते किधर गया होता

दर्द में डूब कर बिखर गया होता
तुम पनाह न देते किधर गया होता
तेरे आखिरी मेसेज ने रोक ली साँसे
सूरत पे यकी करता तो मर गया होता
मुज़बुरिया क्या हैं पता चल जाता
तू एक बार जो मेरे हालात से गुज़र गया होता
हर बार वही फरेब हैं मिरे नसीब में
गोया कोई तजुर्बा तो मुख़्तसर गया होता

Thursday 17 July 2014

पलकों में दबा कर एक आंसुओ का सैलाब रखा हैं

पलकों में दबा कर आँसुओ का सैलाब रखा हैं
दुनिया से छुपा कर अबतक तेरा ख्वाब रखा हैं

आहिस्ता आहिस्ता ही समझ में आऊँगा
अपनी शख्शियत पे बड़ा मेहराब रखा हैं,

हमने तो मोहब्बत बेइन्तहा की थी,
उन्होंने नफरतो का ही हिसाब रखा हैं,

घर से निकल कर जाऊ तो किस तरफ
अपनी दुनिया को ख़ुद ही उजाड़ रखा है,

हमने उनके जुल्म भी भुला दिए
उन्होंने हमारी नादानी को भी याद रखा हैं

लौट के शहर से ग़ाव जाने से डरता हूँ
भाइयो ने आँगन को इतना बाट रखा हैं

Tuesday 17 June 2014

काँटों की सेज पर ख्यालो आ जाओ

काँटों की सेज पर ख्यालो आ जाओ
बेबसी की घरो मैं भी कभी उजालो आ जाओ
वही जफ़र वही जज़्बात  जिन्दा हैं
कभी कहकर तो देखो चाहने वालो आ जाओ

ख़त में दबाकर गुलाब भेजा हैं

उसने सारे शिकवो का जवाब भेजा हैं
ख़त में दबाकर गुलाब भेजा हैं
मेरे बगैर कैसे बीते हैं सुबह शाम
सूखे पत्तो में सारा हिसाब भेजा हैं
एक एक जब्ज में क़यामत बयान होती हैं
चंद पन्नो में मोहब्बत का किताब भेजा हैं
बहुत भटका हु अंधेरो मैं तमाम उम्र
लिफाफे मैं दबाकर आज आफ़्ताभ भेजा हैं

Thursday 12 June 2014

जख्म जिगर के हरे रखना,

जख्म जिगर के हरे रखना,
दिल मे यादो के उजाले भरे रखना

तुम दोस्ती भी निभाओ जी भरके
मेरी जान यारो से भी कुछ फासले रखना
सच्चाई पे सितम तो ज़माने का दस्तूर है
हर जुल्म से बढकर तुम होसले रखना
जलने भी लगी है दुनिया अपने निबाह से
झुपाकर तुम अपने सारे फैसले रखना.......!!!

Monday 26 May 2014

ये रात एक मज़बूरी सी हो गयी है

ये रात एक मज़बूरी सी हो गयी है
जिसको हम दोनों लाधे है
अरसे से अपने सिरहानो से बांधे हें...
ना मेरे दर्द की तुमको कोई चुभन है
तुम्हारे खालीपन का मुझको भी कोई एहसास नही
नीद में कभी हाथ छू भी ले जरा
अपनी हदों में दुरिया लौट आती है
ये गल रही सड रही बदल रही
जो कभी थी मुकम्मल हमारे होने से
मुझमे तुममे अधूरी हो गयी हैं
ये रात मज़बूरी हो गयी है।

Saturday 24 May 2014

तू मेरी जीत है इसमें मेरी हार सही..








मेरे हालात मुझपे दुशव़ार सही
तू मेरी जीत है चाहे इसमें मेरी हार सही..

अब यही मेरी जिंदगी का सच हैं मुक़द्दर है,

चाहे मेरे सर पे लटकती हुई तलवार सही..

हमतो उनको दुनिया बना के बैठे है,

वो चाहे हमे छोड़ने को तैयार सही...

बनके सिकंदर जज़बातो को फ़तेह किया,

तेरा सकुन तेरा चाँद उसके कदमो का मोहताज सही

मुझको आराम मिले तो यु ही सही
चंद साँसे तुझसे उधार सही..

एक रोज़ दोनो ने एक ठंडक साथ निगली थी,

आज हमारे मिलने में कितनी आग सही,

दो रूहें तो कबकी जफ़र एक हुई,
अपने बीच दुनिया की लाख दीवार सही....

Wednesday 21 May 2014

ये घुटन जो दिल में बैठी है

ये घुटन जो दिल में बैठी है
क्या बताऊ तुमको कैसी है.
दुनियादारी सब खारी सी लगती है
आती जाती साँसे भारी सी लगती है
बात तेरी हो फफक पड़ता हू
वो यादे सारी एक कटारी सी लगती है
कभी भूल से हँस भी लू जरा
दिन भर आंखे भारी सी लगती है
यु राहों मे जिसके हम सदिया बैठे
हर लम्हा वो सजोये संभाले सैधे
ख्याल उन्हें तक कभी न आता
हम आज भी सोचते वो कैसी है
ये घुटन जो दिल में बैठी है
क्या बताऊ तुमको कैसी है........!!!

Tuesday 20 May 2014

जाने क्यों दिल फिरभी रुआसा है

जो हुआ था पहले वही हुआ सा है
जाने क्यों दिल फिरभी रुआसा है

हमको उनसे मिलना आफरी सा है

उनको हमसे ताल्लुख बददुआ सा है
कमनशिबी मेरी जिंदगी सही
लेकिन उसका चेहरा तो दुआ सा है
बातो मे चिनगारिया सी है
वस्ल में भी बेरुखी का धुआ सा है
बड़े बनके जमीदार से फिरते है
वो जिनका चेहरा अफ्सरा सा है
किसको फुर्सत मिले हमसे बात करे
जबकी काम हमको उनसे बस जरा सा है......!

कोई कैसे खुदको याद रखे

तुम्हारी याद मे कोई कैसे खुदको याद रखे
यही मर्ज़ी तो क्यों इस दिल को आबाद रखे

प्यास मे डूब भी जाये दरिया तो अच्छा है
दरिया में डूब के कोई कैसे प्यास रखे
बाहों में भरके कोई जो पूछे ख्वाहिशे हमसे
इसके बाद और भी कोई क्या फरियाद रखे
जबके जीना इस हाल में जफ़र सीख गया है
इस घर में अब खुशिया फरिश्तो मेरे बाद रखे

Monday 19 May 2014

दर्द कभी यु भी हुआ की राहत बन गया,

दर्द कभी यु भी हुआ की राहत बन गया,
सैय्याद ही बुलबुल की चाहत बन गया.

हमने सर भी कटवाए तो कुछ खास नही,
बस दो आंसू तुम्हारे सहादत बन गया.
पहली ही बार के तजुर्बे से एहसास हुआ,
आज के दौर में ताल्लुख तिजारत बन गया
उससे बिछड़ने का असर यु भी हुआ
उसीका ख्याल ही हर आहट बन गया.
वल्लाह जमाल दे जफ़र वफादारी मे,
पहले जो शौक था वो इबादत बन गया.......

Sunday 18 May 2014

चाँदनी रातो मे आप छत पे आया करो  ,

चाँदनी रातो मे आप छत पे आया करो  ,
क़भी साँझ ढले चाँद से भी बतियाया करो ,

जरूरी नही हर बात मे कुछ मतलब हो,
दुपहरी में खेलो ,बारिशो मे नहाया करों 

ये एहसासात दुनिया के समझ के परे ही तो है 
ये जज़्बात दिल मे ही  चुपचाप दबाया करो

अबके इलेक्शन, सियासत गर्मियों पे भारी  है ,
छत पे सो जाओ,लाइट के इंतज़ार में वक़्त मत जाया करो। 

जब निगाह चाँद सूरज पे हो तो यु न दिल छोटा करते,
चन्द हारो में भी जश्न मनाया करो …। 

Wednesday 14 May 2014

दिये है जख्म जिसने उमर भर के लिए,

दिये है जख्म जिसने उमर भर के लिए,
दुआए करते है उसी सितमगर के लिए.

जिसको तुम हमारी कमज़ोरिया समझते हो
गाव के लोग याद करते है हमे उसी हुनर के लिए
हमारी राते सदियों से करवटो मे लिपटी है
तरसते है एक नीद एक बिस्तर के लिए
मेरे वजूद पे ही लाचारिया लिखी उसने
किसे मुलजिम करू अपने मुकद्दर के लिए
तुम्हारी नफरतो का बोझ दबा देता है
जब भी कदम उठता हू सुलह सहल के लिए
जानता हूँ मुसीबत बन गया है जफ़र
कुछ बोलने की ज़रूरत नही इस ज़हर के लिए


दिन मै जो बहुत सारे सपने सजाते हैं ,
रात मै वो बेचारे सो भी नही पाते हैं .........