Wednesday 30 January 2019

सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं....






सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं,
रात काली हैं या चाँद ने अंधेरे बिछायें हैं,


कुछ मग़रूरओ  के हौसले इतने बुलंद हैं,
रोशनी के डर से कितने सूरज बुझाये हैं,

खेत मेरे ,दो बूंद पानी को तरसते रहे,
शेयर बाज़ार से आप कौनसी अच्छी ख़बर लाये हैं,

बदन से आज भी मिटटी की भीनी बू नही जाती,
कई बार किसान तुम्हारे जुठ वादों में नहायें हैं,

कोई साज़िस तुम्ही ने अलबत्ता करी होगी,
जबकी सारे खंज़र हमने ख़ुद ही दफ़नाये हैं,

वतन पे मेरे भीड़  का जुनून हावी है,
इलेक्शन से ये फ़सल काट के लाये हैँ,

तेरे आगे बस मेरा वश नही चलता,
शिकायत तुझे हैं मुझे बस इल्तिजाये हैं,

तुम्ही ने अंधेरों में मुझें बरसों बरस धकेल दिया,
हमने अपनी किताबो में कई चिराग़ दबायें हैं...

Friday 18 January 2019

जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं.....








तुम गांडीवधारी हो या तुम्हे ख़सारा हैं
हम दांव खेला चुके,अब समर तुम्हारा हैं,


तुम फ़क़द तमाशा देखो,फब्तियां उड़ाओ,
जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं,

कई रोज़ की बरसात में जब आँख सुख जायेगी,
तब समझ आयेगा किसको गले से उतारा हैं,

तुम अपनी दुनिया सजाओ घर बनाओ,
बस कभी कभार की मुलाकातों में अपना गुजारा हैं,

शुरुवाती मोहब्बत में बहुत हमने चाँद तारे तोड़ लिये
कश्तियां सम्भाल लो बस आगे तेज़ धारा हैं,

धुएँ  के छल्ले उड़ाओ, मछली बन खूब इतराओ,
मगर जालिम बड़ा वक़्त का बेरहम मछवारा हैं,

और क्या ज़िन्दगी का हासिल हैं हरशु देखा हैं
जबकि में जमीन पे सोता हूँ सारा जाहांन हमारा हैं,

इतनी  सिद्दत से चाहा कि सब्र ने बगावत करदी,
हज़ार बार तुम्हे ख़त लिख कर खुद फाड़ा हैं,

Tuesday 15 January 2019

दोस्त बहुत हैं यहाँ कोई यार नही....!!!





किसी के आगे अब खुलने को हम तैयार नहीं,
दोस्त बहुत हैं यहाँ कोई यार नहीं,


मुश्किलों का समुन्दर हैं,तकलीफों के पहाड़ हैं,
इस ताल्लुख़ से उबरने के कोई आसार नहीं,

हाथ मेरे ख़ाली सही,आँखों में क़यामत हैं,
ख़ामोशी भी इबादत हैं,नज़दीकी ही प्यार नहीं,

बहुत सिखाया ज़िन्दगी के तजुर्बों ने
दुश्मन बना लो मगर कोई राजदार नहीं,

मैं ही प्यासा हूँ और मुझी में समुन्दर हैं,
ज़िन्दगी तुझ_सा कोई अय्यार नहीं,

किसी डाल पे फूल खिले कोई आँगन खाली हैं
मुझे तेरी फ़ैसलों पर अब ऐतबार नहीं,

तुमने क़िताबों को मुलज़िम बनाया,लोंगो को भड़काया
मेरे हाथ में क़लम थी कोई तलवार नहीं,

Monday 7 January 2019

अंधेरे ही फैलाने को यहाँ उजाला निकलता हैं.....







यहाँ हरेक सुहागिन का बदस्तूर हलाला निकलता हैं,

दून से दवरा पहुचते परियोजना का दिवाला निकलता हैं,


कौन सा दामन पाक हैं किन हाथों पे क़लम रखूँ ,

मदो की बंदरबाट में हर चेहरा काला निकलता हैं,


पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की कितने घुट्टिया पी गये,

फिर भी हर फ़ाइल में हमारे लिए मसाला निकलता हैं,


रिबन काटने फ़ोटो खिंचाने की बस ये भीड़ हैं,

मंत्री जी के जाने भर से पंचायतघर का ताला निकलता हैं,


इन पहाड़ो पर आर्मी के एहसान बहुत रहे हैं,

रोजग़ार को हर बरस सिर्फ भर्ती का हवाला निकलता हैं,


अपनी जवानी तो हम शहर की चिमनियों में फूक आये,

बस बुढ़ापे में वापस घर को पहाड़ वाला निकलता हैं,


एक और जाँच,एक और मुह नोटों को,खुल जाएगा,

फ़क़द अंधेरे ही फैलाने को यहाँ उजाला निकलता हैं,



Friday 4 January 2019

बहुत गरूर था हमे,आसमानों में आशिया बनाना था....






बहुत गरूर था हमे,आसमानों में आशिया बनाना था,
मगर किश्मत में टूटकर पंख,बस फड़फड़ाना था,



लाख मुसीबतों को जीत,जैसे ही मंज़िल को पाना था,
तमाम कमज़ोरियों को उसी वक़्त रास्ते पे आ जाना था,
सिर फोड़े,दुनिया से टकराये,कितने घूट ज़हर निगल आये,
हाथो में जो ना था,उसे मिलकर भी छूट ही जाना था,
कौन सी नाराज़गी थी जिसका हल दो जहां में नही,
बस एक बार तुम्हे प्यार से बुलाकर गले लगाना था,
अभी लगा था बौर और तुमने हल चला दिया,
थोड़ी देर में किसान की मेहनत,आढतियों का खज़ाना था,
कौन अब अज़ानों के फैसलों का इंतज़ार करता,
जिन्हें जुठ पता था उन्हें जिंदा ही दफ़नाना था,
तुम क्यो हर शै में फलसफ़ा ए कुदरत ढूंढते हो,
गोया ऐसे ही तो जीना था ऐसे ही मर जाना था...