Friday, 15 May 2015

काँटो की माला कितनी इस उपवन में अब भी बाकी हैं..


कितना दुःख,कितना व्योग इस जीवन मेंअब भी बाक़ी हैं
काँटो की माला कितनी इस उपवन में अब भी बाकी हैं..


गांव त्यागकर,माना हमने बस विसपान किया,
कुछ शीतलता किन्तु तेरे इस चन्दन में अब भी बाकी हैं

कोई कठिनता कोई कष्ट जीवन से पार नही हैं,
एक सरलता हर उलझन में मित्रो अब भी बाकी हैं.

उसकी ना में यू तो स्वप्न सारे स्वर्ग सिधार गये,
अमिट छवि सी,एक मन मंदिर में अब भी बाकी हैं

सिंदूर और श्रृंगार नया हैं,बातो का भी व्यवहार नया हैं,
मेरी कविता,पर तेरे कंगन की खनखन में अब भी बाकी हैं.....

Monday, 4 May 2015

हालात से हारकर उम्मीद फिर रोने को हैं.....

राह विरान,दिल परेशान,पलके भिगोने को हैं,
हालात से हारकर उम्मीद फिर रोने को हैं.


रास्ते सख्त हैं,मुश्किल बड़ा वक़्त हैं,
ज़िन्दगी पाव खीच कर कफ़न बिछौने को हैं.

टूटती सांस,बेचैन धड़कने खामोश,
ताकते पस्त, हौसले भी कोने को हैं.

एक ही तशवीर में, क्या क्या दिखा दिया
रौशनी से भागकर आँख बस सोने को हैं.

कहा जाऊ किससे मिलू किससे बात करुँ,
ज़िन्दगी एक सी बोझ शामो सहर ढोने को हैं

तेरी सिसकियो में मैंने सब पढ़  लिया
बात जो ना सुनी जो ना किसीसे कहने को हैं

सारे अरमान किताबो मैं दबके मर गए,
हमभी अपना वज़ूद पन्नों में कही खोने को हैं....