हैं कोई आग जो मुझमे जला करती हैं,
एक कश्मकश सी दिल में पला करती हैं।
बगियाँ फूल बहार घनघोर घटाए,
तेरे आने की इत्तिला किया करती हैं।
पेट की आग,दुनिया के सऊर सीखा देती हैं
मज़बूरी पतली सी नटनी पे चला करती हैं
अमीरी हर शौक खरीद लेती हैं,
गरीबी बस हाथ मला करती हैं,
मुफ्त की एक चाय हमको हराम हैं,
जबकि सिर्फ बेमानी तुमको फला करती हैं।
एक कश्मकश सी दिल में पला करती हैं।
बगियाँ फूल बहार घनघोर घटाए,
तेरे आने की इत्तिला किया करती हैं।
पेट की आग,दुनिया के सऊर सीखा देती हैं
मज़बूरी पतली सी नटनी पे चला करती हैं
अमीरी हर शौक खरीद लेती हैं,
गरीबी बस हाथ मला करती हैं,
मुफ्त की एक चाय हमको हराम हैं,
जबकि सिर्फ बेमानी तुमको फला करती हैं।