Thursday 14 August 2014

सारा समुंदर भी पी सकता हू मुझे प्यास इतनी हैं.....

मत पूछ इस बेक़रार दिल को तेरी तलाश कितनी हैं,
सारा समुंदर भी पी सकता हू मुझे प्यास इतनी हैं

कितनी आँखों से सपने, कितने मुह से निवाला छिना हैं
आज के दौर में दोस्त दुनिया बदहवास कितनी हैं

जिस पेड़ की छाल पर खुरोच कर लिखा था तुमने नाम
पूछता हैं वो तुझसे बिछड़कर उदास कितनी हैं

हरेक राह में वही मंजिल वही साथी तलाशता हैं
तेरी सोहबत ,तेरी चाहत इसको खास कितनी हैं

इन दंगो में हमने चोटे गहरी दिलो में खायी हैं
सियासत ऊपर से गिनती हैं शहर में बस लाश कितनी हैं

तेरी तशवीर जड़ा लोकेट गले से बांध लिया हैं
नादाँ समझता हैं तू धडकनों के पास कितनी हैं

देर रात तक जागना,गज़ले कहना,देर सुबेरे उठाना
गोया शहर में चंद लोगो की जिन्दगी बर्बाद कितनी हैं...


3 comments:

  1. बहुत बहुत आभार

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  2. इन दंगो में हमने चोटे गहरी दिलो में खायी हैं
    सियासत ऊपर से गिनती हैं शहर में बस लाश कितनी हैं
    वाह!!!
    लाजवाब गजल
    एक से बढ़कर एक शेर।

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  3. बेहतरीन गज़ल।
    सादर।

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