Thursday 19 February 2015

हर सुबह मैं अपने साथ नही रहता ...


कैसे गुजरी रात,याद नही रहता ,
हर सुबह मैं अपने साथ नही रहता ...

कुछ ख्याल आकर ख्वाबो को सजाते हैं ,
सोये हुये मैं कभी बर्बाद नही रहता ...

तेरे शहर में ये कौन सा मौसम हुआ करता हैं ,
तुम्हारे खतो में कभी जज्बात नही रहता ....

अपने ही आजकल जख्म दिया करते हैं ,
सब मुश्किलों में,दुश्मनों का हाथ नही रहता ...

दम तोड़ देगा इश्क मौलवियों पडितो के झगडे में ,
मज़हबो का मसला उसके दरबार नही रहता ...

कहते कहते कुछ  जफ़र रुक सा जाता हैं
जब दिल गिरफ्तार हो तो जुबा आजाद नही रहता  .....

5 comments:

  1. वाह क्‍या बात है। लाजवाब शेरों से युक्‍त गजल। आपकी गज़लों का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसे ही लिखते रहिए। हम सबके लिए।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया कहकशां जी ...

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  3. तेरे शहर में ये कौन सा मौसम हुआ करता हैं ,
    तुम्हारे खतो में कभी जज्बात नही रहता ....

    .......बहुत शानदार पंक्तियाँ :)

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  4. तेरे शहर में ये कौन सा मौसम हुआ करता हैं ,
    तुम्हारे खतो में कभी जज्बात नही रहता ....

    बहुत उम्दा गजल.पहली बार आपको पढ़ा है.मक्ता (अंतिम शेर) आपने अधूरा क्यों छोड़ा है?
    नई पोस्ट : क्यों वादे करते हैं

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  5. तेरे शहर में ये कौन सा मौसम हुआ करता हैं ,
    तुम्हारे खतो में कभी जज्बात नही रहता ....
    वाह ... कमाल का शेर निकला है ... गज़ब की बात कह दी इस शेर में ... पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है ...

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