Thursday 9 April 2015

युही किसी शाम मैं ढल जायूँगा,

युही किसी शाम मैं ढल जायूँगा,
तेरी दुनिया से बहुत दूर निकल जायूँगा.


जो भी जी चाहे फिर जीभर के करना
अपने पीछे मैं तेरा नशीब बदल जायूँगा

चंद रोज़ करेगे ये लोग  रोना धोना,
धीरे धीरे मैं कब्र की मिटटी मे गल जायूँगा

तेरी हमदर्दी की खैरात मुझे मंज़ूर नही
अपने हालात से मैं खुद ही संभल जायूँगा

 यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा

आज की रात हैं क़यामत,फैसला करले,
मलाल तमाम उम्र का कल सुबह मल जायूँगा


14 comments:

  1. तेरी हमदर्दी की खैरात मुझे मंज़ूर नही
    अपने हालात से मैं खुद ही संभल जायूँगा

    मंगलकामनाएं आपको !

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  2. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।

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  3. तेरी हमदर्दी की खैरात मुझे मंज़ूर नही
    अपने हालात से मैं खुद ही संभल जायूँगा ..
    बहुत लाजवाब शेर है ... पूरी ग़ज़ल कमाल के शेरों से सजी है ... बहुत उम्दा ..

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  4. यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
    किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा
    waah!!! :)

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  5. यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
    किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा
    waah!!! :)

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  6. यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
    किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा
    waah!!! :)

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  7. यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
    किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा
    waah!!! :)

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  8. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।

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  9. Mere blog par new post par aapka intzaar hai..

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  10. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.

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  11. यकींन का फरिश्ता,उम्मीद का सूरज हूँ
    किसी आँख मे रात भर पल जायूँगा
    वाह जफर साहब, बहत खूब।

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  12. दर्द से भरी गज़ल। शानदार भाव।

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  13. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  14. तेरी हमदर्दी की खैरात मुझे मंज़ूर नही
    अपने हालात से मैं खुद ही संभल जायूँगा ..
    .... लाजवाब शेर है उम्दा

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