Friday 28 December 2018

सब शिकायते एक खत में लिख कर बक्शे में बंद कर देते हैं....





सारी तकलीफ़ें सारी उलझनें ख़त्म कर देते हैं,
सब शिक़ायतें एक  ख़त में लिख़

उन्हें बक्से में बंद कर देते हैं.....



फिर न तुम ज़िक्र करो कोई
ना मैं कोई तंज क़सू
खोल कर गाँठे 
सारी,
सारी उधेड़ सब तुरपन 
बुनूँ,  
तुम प्याज़ काटो,मैं लहसुन छिलता हूँ,
दाल में छोक़ा दो तुम,मैं चावल बीनता हूँ
बराये-बहाने किचेन में साथ बातें चंद कर लेते हैं
सारी शिकायते बक्से में बंद कर देते हैं.....

ये तो तेरा-मेरा रोज़ का मसला हैं,
जंगे ज़िन्दगी में ,
ये कहा सुन ही तो असल असला हैं,
यूँही खट्टे मीठे तजुर्बों की रवानी हैं,
हम्हे तो बस यूँही अब निभानी हैं,
थोड़ा तुम क़दम बढ़ाओ,
मैं कुछ मान जाता हूँ
जरा -सा मुस्कुरा दो तुम जो
मैं झट गले लगता हूँ
तूफ़ान अभी बड़े आने वाले हैं
हमें कितने लम्हें निभाने हैं,
चलो हाथ पकड़ कर फ़िर
सब्जी लेने चलते हैं,
स्कूटी पर दूर तक टहलते हैं,
नई पिक्चर के टिकट लाता हूँ,
पिज़्ज़ा और चोको लावा केक खिलता हूँ,
चलो मॉल चलके घरके लिए
नयें पर्दे पसंद कर लेते हैं,
सारी शिकायते बक्से में बंद कर देते हैं.....

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