दर्द ने किस कदर इंतेहा की हैं,
हमने तुमसे कोई शिकायत कहां की हैं,
हमने तुमसे कोई शिकायत कहां की हैं,
जिस तरह हमने हज़ार मिन्नते की
तुमने वैसे अभी इल्तेज़ा कहा की हैं
तुमने वैसे अभी इल्तेज़ा कहा की हैं
बैठ कर वही घण्टो खुदको ढूंढा हैं
तेरे बाद भी इश्क़ की हर रेशम अदा की हैं
तेरे बाद भी इश्क़ की हर रेशम अदा की हैं
जब भी एक कतरा नमी तेरी आंखों में देखी
हमने अपने दिल की हर आरज़ू दबा दी हैं
हमने अपने दिल की हर आरज़ू दबा दी हैं
सारा इल्ज़ाम सारा कसूर अब तेरे सर हैं
मैंने तो अपने दिलकी तुझे बता दी हैं,
मैंने तो अपने दिलकी तुझे बता दी हैं,
लाख रात भर रोकर भी समझ ना पाया हूँ,
प्यार करके हमने कौनसी खता की हैं,
प्यार करके हमने कौनसी खता की हैं,
बस एक ग़ज़ल दिल में छुपा के रखी हैं
जबके हमने तेरी हर बात भुला दी हैं
जबके हमने तेरी हर बात भुला दी हैं
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शनिवार 18 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
सुंदर अल्फाजों से सजाकर व्यक्त किया है आपने। बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब..... ,लाज़बाब सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
कमाल कर दिया साहब।
ReplyDeleteहर शेर आला दर्जे का है।
मजा आ गया।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
जिस तरह की हैं हमने हज़ार मिन्नते
ReplyDeleteतुमने वैसे अभी इल्तेज़ा कहाँ की है
क्या शोख़ी भरी ये इस बात में। ..बहुत खूबसूरत बात कह डाली आपने
बधाई स्वीकारे