बहुत करली सुबह शाम वही रोज की जद्दोजहद,
दुनिया के सवालो में फस गया जफ़र किस कदर
ये कौन सी कालिख गोया तक़दीर पर अमादा हैं,
कितना खपाऊ सर,फिर भी हाथ मेरे खाली फ़कद
यू तो तम्मनाओ का होता रहा हैं क़त्ल बारहा
अबकी बार साहिब मगर उसने करदी हद,
तेरे बाद रोज ही पिया किया मैंने जहर
बस एक बार जो तुम होठ पे रख गये शहद
निचोड़ कर सारा रस तो में पी ही गया
क्या करोगे लेके वापिस तुम अपने ख़त
ये चुभन ये घुटन ही हकीक़त हैं और क्या
ख्वाब तो हमने भी हसी देखे थे बहुत
रात भर इन अंधेरो को जफ़र सुनाता रहा दास्ता
इनके आंसू पत्तियों से ओस बन गिर रहे अब तलक....
दुनिया के सवालो में फस गया जफ़र किस कदर
ये कौन सी कालिख गोया तक़दीर पर अमादा हैं,
कितना खपाऊ सर,फिर भी हाथ मेरे खाली फ़कद
यू तो तम्मनाओ का होता रहा हैं क़त्ल बारहा
अबकी बार साहिब मगर उसने करदी हद,
तेरे बाद रोज ही पिया किया मैंने जहर
बस एक बार जो तुम होठ पे रख गये शहद
निचोड़ कर सारा रस तो में पी ही गया
क्या करोगे लेके वापिस तुम अपने ख़त
ये चुभन ये घुटन ही हकीक़त हैं और क्या
ख्वाब तो हमने भी हसी देखे थे बहुत
रात भर इन अंधेरो को जफ़र सुनाता रहा दास्ता
इनके आंसू पत्तियों से ओस बन गिर रहे अब तलक....
निचोड़ कर सारा रस तो में पी ही गया
ReplyDeleteक्या करोगे लेके वापिस तुम अपने ख़त..
बहुत खूब ... कोरे रह गए हैं सब कागज़ अब ... लाजवाब शेर ...
dhanyavad.....
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