Friday 18 January 2019

जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं.....








तुम गांडीवधारी हो या तुम्हे ख़सारा हैं
हम दांव खेला चुके,अब समर तुम्हारा हैं,


तुम फ़क़द तमाशा देखो,फब्तियां उड़ाओ,
जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं,

कई रोज़ की बरसात में जब आँख सुख जायेगी,
तब समझ आयेगा किसको गले से उतारा हैं,

तुम अपनी दुनिया सजाओ घर बनाओ,
बस कभी कभार की मुलाकातों में अपना गुजारा हैं,

शुरुवाती मोहब्बत में बहुत हमने चाँद तारे तोड़ लिये
कश्तियां सम्भाल लो बस आगे तेज़ धारा हैं,

धुएँ  के छल्ले उड़ाओ, मछली बन खूब इतराओ,
मगर जालिम बड़ा वक़्त का बेरहम मछवारा हैं,

और क्या ज़िन्दगी का हासिल हैं हरशु देखा हैं
जबकि में जमीन पे सोता हूँ सारा जाहांन हमारा हैं,

इतनी  सिद्दत से चाहा कि सब्र ने बगावत करदी,
हज़ार बार तुम्हे ख़त लिख कर खुद फाड़ा हैं,

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