इश्क़ की गहराई में उतारने में वक़्त लगा,
टूट गया मगर बिखरने में वक़्त लगा...
टूट गया मगर बिखरने में वक़्त लगा...
तूने मेरे नसीब में डूबना लिख तो दिया,
बीच मझधार मगर पाँव धरने में वक़्त लगा,
बीच मझधार मगर पाँव धरने में वक़्त लगा,
जब उसने कई बार मुझे झूठ पीला दिया
मेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा,
मेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा,
तुम भी थे वक़्त भी शाम और मय भी,
इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा,
इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा,
किनारे पर ही जब तमाशे दुनिया के देख लिए
मुझे फिर दरिया में उतरने में वक़्त लगा,
मुझे फिर दरिया में उतरने में वक़्त लगा,
ना जाने किस शक पे तुम घेर के मार दो,
मौका ए हालात में घर से निकलने में वक़्त लगा.....
मौका ए हालात में घर से निकलने में वक़्त लगा.....
तूने मेरे नशीब में डूबना लिख तो दिया,
ReplyDeleteबीच मझधार मगर पाव धरने में वक़्त लगा,....वाह !! बहुत ख़ूब आदरणीय ज़फर जी |
सादर
बहुत सुंदर 👌👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्त पंचमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब......आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
शब्दों की अशुद्धियों को ठीक करने की जरूरत है,...शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteजब उसने कई बार मुझे जुठ पीला दिया
ReplyDeleteमेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा, ...
बहुत खूब है ये शेर ... सच है की झूठ का व्योपार इतना ज्यादा है की सच को सच समझना मुश्किल हो गया है आज ... लाजवाब शेर हैं सभी ...
bahut hi shandar ....lajwab
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। बस शुरुआत में कुछ वर्तनी की गलतियाँ हैं जैसे नसीब, पाँव, झूठ तो इन्हे ठीक कर लीजियेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteAwesome post. keep sharing.
ReplyDeleteshayari in english