Sunday 10 February 2019

इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा...






इश्क़ की गहराई में उतारने में वक़्त लगा,
टूट गया मगर बिखरने में वक़्त लगा...


तूने मेरे नसीब में डूबना लिख तो दिया,
बीच मझधार मगर पाँव धरने में वक़्त लगा,

जब उसने कई बार मुझे  झूठ पीला दिया
मेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा,

तुम भी थे वक़्त भी शाम और मय भी,
इतनी प्यास थी कि फिर हद से गुजरने में वक़्त लगा,

किनारे पर ही जब तमाशे दुनिया के देख लिए
मुझे फिर दरिया में उतरने में वक़्त लगा,

ना जाने किस शक पे तुम घेर के मार दो,
मौका ए हालात में घर से निकलने में वक़्त लगा.....

11 comments:

  1. तूने मेरे नशीब में डूबना लिख तो दिया,
    बीच मझधार मगर पाव धरने में वक़्त लगा,....वाह !! बहुत ख़ूब आदरणीय ज़फर जी |
    सादर

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  2. बहुत सुंदर 👌👌

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    बसन्त पंचमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत खूब......आदरणीय
    बहुत ही सुंदर

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  5. शब्दों की अशुद्धियों को ठीक करने की जरूरत है,...शुभकामनाएं ।

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  6. जब उसने कई बार मुझे जुठ पीला दिया
    मेरे गले से सच को उतरने में वक़्त लगा, ...
    बहुत खूब है ये शेर ... सच है की झूठ का व्योपार इतना ज्यादा है की सच को सच समझना मुश्किल हो गया है आज ... लाजवाब शेर हैं सभी ...

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  7. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। बस शुरुआत में कुछ वर्तनी की गलतियाँ हैं जैसे नसीब, पाँव, झूठ तो इन्हे ठीक कर लीजियेगा।

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  8. बहुत सुन्दर रचना सर

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  9. Awesome post. keep sharing.

    shayari in english

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