आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती
सिर फोड़ने से अकले नही बदला करती,
कई बार मैंने किसानों को सूली पे रखके देखा हैं
हमारे गांव की खुदगर्ज़ फसले नही बदला करती,
लाख बार हज़ार कोशिस से जाहिर हैं
वजह बदल देने से वसले नही बदला करती,
तेरे जाने के बाद अकेले ही उसी जग़ह वक़्त बिताता हूँ
सूद अता करने से ही असले नही बदला करती,
दगा देता हैं वो बहुत सजा सवार के मासूमियत से,
गर्म जोशी से मिलने मुलज़िम की दफ़्हे नही बदला करती,
बहुत खूब...... आदरणीय।
ReplyDeleteकई बार मैंने किसानों को सूली पे रखके देखा हैं
हमारे गांव की खुदगर्ज़ फसले नही बदला करती,
लाजवाब गजल....
ReplyDeleteएक से बढकर एक शेर....।
वाह!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/02/2019 की बुलेटिन, " भारतीय माता-पिता की कुछ बातें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह ! बहुत ख़ूब आदरणीय
ReplyDeleteसादर
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
ReplyDeleteमन को छू जाने वाले भाव...
ReplyDeleteJust love this
ReplyDeletehindi