कुछ अनकही बातों को बोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,
हरेक लब्ज़ में लम्हो के समुन्दर है,
जाने कैसे कागज़ में सब उड़ेल देता हूँ,
किस नकाब में कौन सा चेहरा पोशीदा हैं,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,
हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,
क़लम कभी नये उनमान को जब जम जायें,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,
खुद छुपा रखता हूँ तुम्हे सब से,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,
शुभ हो होली। बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-03-2019) को "होली तो होली हुई" (चर्चा अंक-3282) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऔं के साथ-
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लम्हों के समुन्दर को सागर में उड़ेलना नए कलाम को जन्म देता है ...
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर गज़ब ...
होली की बधाई ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब पुराने वक्त से निचोड़कर मोहक अर्क प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा।
हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
ReplyDeleteकितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,.....बेहतरीन👌👌👌
बहुत सुन्दर आपको और आपके पूरे परिवार होली के पावन पर्व व रंगो उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐🌹🙏
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
बहुत ही सुन्दर ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना।
verry verry nice ....Keep it up
ReplyDeleteThanks
बहुत सुंदर
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