Thursday, 21 March 2019

कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ.....!





कुछ अनकही बातों को बोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,


हरेक लब्ज़ में लम्हो के समुन्दर है,
जाने कैसे कागज़ में सब उड़ेल देता हूँ,

किस नकाब में कौन सा चेहरा पोशीदा हैं,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,

हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,

क़लम कभी नये उनमान को जब जम जायें,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,

खुद छुपा रखता हूँ तुम्हे सब से,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,

11 comments:

  1. शुभ हो होली। बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-03-2019) को "होली तो होली हुई" (चर्चा अंक-3282) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऔं के साथ-
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. लम्हों के समुन्दर को सागर में उड़ेलना नए कलाम को जन्म देता है ...
    लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर गज़ब ...
    होली की बधाई ...

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  6. वाह बहुत खूब पुराने वक्त से निचोड़कर मोहक अर्क प्रस्तुति।
    उम्दा।

    ReplyDelete
  7. हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
    कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,.....बेहतरीन👌👌👌

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर आपको और आपके पूरे परिवार होली के पावन पर्व व रंगो उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐🌹🙏
    वाह बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  9. बहुत ही सुन्दर ...
    लाजवाब रचना।

    ReplyDelete