कई बार जो जहर हम दोनों ने साथ-साथ पीया,
चंद रोज की अनबन में तुमने जमाने को उगल दिया..
बेकशी ने जैसे तैसे बेक़रारी को जब समझा लिया,
नया बहाना बनाकर उसने फिर इरादा बदल दिया,
आज भी अपने फैसले पे हरसू पछताता हूँ,
उस मोड़ पर क्यो हमने अपना रास्ता बदल दिया,
तुम्हारा गुस्सा तुम्हारे जज्बात पर हावी था,
भीगीं आँखों से मनाया और लाल से मचल दिया
सारा शहर अंधेरो के साया में पागल बना रहा,
झूठ ने बड़ी चालाकी ने अपना चाल चल दिया....!!!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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-अनीता लागुरी 'अनु'
बहुत खूब ...
ReplyDeleteहर शेर कुछ कहता हुआ ... झूठ चालाक ही होता है ... ये शेर दूर तक जाने वाला है ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 20 नवंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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