Monday, 23 December 2019

हमे घायल जानकर, कई सियार निकल आये हैं...




मुश्किलो के बादल हैं,बेकशी के साये है,
हमे घायल जानकर कई सियार निकल आये हैं


तुम जुदाई के खौफ से मुझे डरा नही सकते
कई रिश्ते मैंने अपनी  जिद में दफ़नाए है,

दिल्ली के ताज में न जाने कैसा जादू हैं,
चींटियों के भी पर निकल आये हैं,

रोज का जिनसे दुआ सलाम मेरे मोहल्ले में हैं,
एक क़ानून से घुसपैठिये कहलाये हैं,

सूरज सूखेगा चाँद टूट कर गिरेगा,
लोगो ने इन वादों पे इलेक्शन करवाये हैं,

इन दफ्तरों ने जहाँ लोगो को रोब शौकत दी,
गरीब,किसान को बस चक्कर कटवाये हैं


8 comments:

  1. इन दफ्तरों ने जहाँ लोगो को रोब शौकत दी,
    गरीब,किसान को बस चक्कर कटवाये हैं

    सच हर तरफ से मार गरीब-गुरबों पर ही पड़ती है

    बहुत अच्छी सामयिक रचना

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २४ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-12-2019) को    "अब नहीं चलेंगी कुटिल चाल"  (चर्चा अंक-3559)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  4. वर्तमान परिवेश को दर्शाता यथार्थ और मार्मिक सृजन.
    सादर

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  5. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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