घिर गए बद्रा और फुहार रिमझिमायी हैं,
यार परदेश ने हवाओं संग चिट्ठी भेजवायीं हैं,
बटोही ख़ुद मय सफ़र दम तोड़ दिये
सौ बरस की दूरी तूने क्यो खिंचवाई हैं
टोहत जिया,अखियां छलक दरिया भई
बैरन असुयो रंग काजल उतार लायी हैं
देर भई सँध्या शर्म को लाल हुई,
साझ ढले जालिम ने कुंडी दी लगाई है
पाथर अंग फूल खिलेंगे सावन ये फुलवारी में,
बादलन कि ओट में चंदनिया चिटकायी है,
परेशान बिदिया रात भर फ़ोन देखत रही
तोहरी एक मुलाकात ने बेचैनी इतनी बड़ायी हैं...
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२२-०८-२०२०) को 'जयति-जय माँ,भारती' (चर्चा अंक-३८०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबादलन कि ओट में चंदनिया चिटकायी है,
ReplyDeleteतोहरी एक मुलाकात ने बेचैनी इतनी बड़ायी हैं...
बहुत सुंदर....