दर्द के शहर में दवा आयीं हैं,
तेरे घर से उड़ती हुई हवा आयीं है,
कैसी उम्मीद अब तो तस्व्वुर ज़िंदगानी है,
उम्र सारी जवानी,बचपन में ही लुटा आयी है
ये सजावट ये भीड़ सब बेरंग है,
जब तक महफ़िल में तू नही आई है,
जाते जाते हाथ छुड़ा कर कह गयी,
बाहर को लेने आज फिज़ा आयी है,
मैं तो कहता था इतने दूर मत जाओ,
मुँह छुपाना ही अब मर्ज की दवाई है,
दर्द के शहर में दवा आयीं हैं,
ReplyDeleteतेरे घर से उड़ती हुई हवा आयीं है,
वाहहह जनाब।।।।।। बेहतरीन गजल।
उम्दा ग़ज़ल।
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
ReplyDeleteबेहद उम्दा
ReplyDeleteबहुत खूब, मार्मिक गजल, सम सामयिक भी
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ReplyDeleteवाह !! बहुत खूब, लाज़बाब गज़ल ,सादर नमन आपको
सुन्दर रचना
ReplyDeleteमैं तो कहता था इतने दूर मत जाओ,
ReplyDeleteमुँह छुपाना ही अब मर्ज की दवाई है,
बहुत सुन्दर रचना !
बहुत ही उम्दा !
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