Friday 19 September 2014

मुझे कतल करने को खंज़र क्यों माँगा

मुझे कतल करने को खंज़र क्यों माँगा
प्यास इतनी सी थी तो समुंदर क्यों माँगा

में इन्कलाब हू आवामी दिलो में बसता हूँ
मुझे मिटाने तो मेरा सर क्यों माँगा

जिसने हारकर दुनिया जीत भी जीत ली थी
मांगना था तो पुरुराज मागते सिकंदर क्यों माँगा

बुनियाद रखी हैं लाशो पर कौमी दंगो ने,
अहले सहारनपुर मिरे खुदा को ऐसा घर क्यों माँगा

दोनों जहान मेरे,मैं ज़ा भी तुमपे निशार करता हूँ
फूल भी मांग सकते थे तुमने नश्तर क्यों माँगा

जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
हैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...


2 comments:

  1. जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
    हैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...
    जमाने की कडुवी हकीकत को बेबाक लिख दिया ज़फर साहब ... लाजवाब गज़ल ...

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  2. बहुत ही खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली गज़ल। भाई आप सक्रिय रूप से ब्‍लागिंग करते रहें। आपकी सक्रियता आपको एडसेंस हासिल करा सकती है।

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