मुझे कतल करने को खंज़र क्यों माँगा
प्यास इतनी सी थी तो समुंदर क्यों माँगा
में इन्कलाब हू आवामी दिलो में बसता हूँ
मुझे मिटाने तो मेरा सर क्यों माँगा
जिसने हारकर दुनिया जीत भी जीत ली थी
मांगना था तो पुरुराज मागते सिकंदर क्यों माँगा
बुनियाद रखी हैं लाशो पर कौमी दंगो ने,
अहले सहारनपुर मिरे खुदा को ऐसा घर क्यों माँगा
दोनों जहान मेरे,मैं ज़ा भी तुमपे निशार करता हूँ
फूल भी मांग सकते थे तुमने नश्तर क्यों माँगा
जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
हैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...
प्यास इतनी सी थी तो समुंदर क्यों माँगा
में इन्कलाब हू आवामी दिलो में बसता हूँ
मुझे मिटाने तो मेरा सर क्यों माँगा
जिसने हारकर दुनिया जीत भी जीत ली थी
मांगना था तो पुरुराज मागते सिकंदर क्यों माँगा
बुनियाद रखी हैं लाशो पर कौमी दंगो ने,
अहले सहारनपुर मिरे खुदा को ऐसा घर क्यों माँगा
दोनों जहान मेरे,मैं ज़ा भी तुमपे निशार करता हूँ
फूल भी मांग सकते थे तुमने नश्तर क्यों माँगा
जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
हैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...
जख्म हर सर पर खून हर चौराहे पर हैं
ReplyDeleteहैरा हूँ इंसा से इबादत में पत्थर क्यों माँगा...
जमाने की कडुवी हकीकत को बेबाक लिख दिया ज़फर साहब ... लाजवाब गज़ल ...
बहुत ही खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली गज़ल। भाई आप सक्रिय रूप से ब्लागिंग करते रहें। आपकी सक्रियता आपको एडसेंस हासिल करा सकती है।
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