Monday 30 July 2018

तड़फते हैं,भटकते हैं,रोते हैं पीते हैं,

 











तड़फते हैं,भटकते हैं ,रोते हैं पीते हैं,
हम तो इसी तरह से जीते हैं...



कोई बात तेरी सी कभी याद आती हैं
एक नमी सी आँखों में उतर जाती हैं
नीची नज़रो से हंस देते हैं
किसी तरह कलेजा ताक पर रख देते हैं
कभी कभी तेरी तश्वीर भी तक लेते हैं
खुद ही कुरेदते हैं जख्म,खुद ही सीते हैं
हम तो इसी तरह से जीते हैं...


वही जहाँ हम तुम कभी आते जाते थे,
हमसे मिलने को तुम जब गिड़गिड़ाते थे
तुम्हारे आंसू हमारी खुशियो में जहाँ गिरे थे
पहली बार जिधर हम मिले थे,
उसी जगह कभी चले जाते हैं
अपना वक़्त हम इसी तरीखे बिताते हैं

तुम्हारे सिवा यू तो अब कोई कमी नही
हारकर तुमसे अपना सबकुछ,
देखो कितनी लड़ाईयां जीते हैं
हम तो इसी तरह से जीते हैं.....

5 comments:

  1. गूगल फालोव्हर का गैजेट लगाइए
    सादर

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  2. बहुत ख़ूब ... इसी तरह जीने होता है जब कोई अपना प्यार करने वाल साथ नहीं होता ... ज़ख़्मों को कुरेदकर उनकी यादों को ताज़ा करना होता है क्योंकि जीने का बहाना। बाई तो चाहिए होता है ...
    लाजवाब रचना है ...

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