Friday, 3 August 2018

हाँ मैं लिखता हूँ...




अनकही सी एक बात को,
दिल में गहरे दबे हुए जज़्बात को
मै लिखता हूँ...


दिन भर के विरोधाभाव से जब मैं भर जाता हूँ
कौरवो की महफ़िल में
कर्ण सा कुछ कह नही पाता हूँ,
जुल्म जब ताकत से गले मिलता है
सूरज जब पूरब में ही अस्त हो जाता हैं
तब खामोश खड़ी हर जुबान को
अपने पुरुषार्थ के सम्मान को
तुम्हारी धूर्त सब जीत में
अपनी सब मात को
मै  लिखता हूँ...


मज़बूरियों से जब हारने को होता हूँ
हथियार डाल कवच उतारने को होता हूँ
अंधेरे जब आँख मीच देते हैं
अपने ही जब हाथ खींच लेते हैं
स्वपन जब कोई जगाते हैं,
हौसले जब संध्या हो जाते हैं
मै चुप कुछ कह न पाता हूँ
मग़र सह भी ना पाता हूँ
तब एक मुशकिल भारी रात को
रूह पर भारी पड़े हालात को
अकेले लड़ते हुए साथियो के साथ  को
मै  लिखता हूँ.

6 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, चैन पाने का तरीका - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आप सभी का बहुत -बहुत आभार ..

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  3. वाह्ह...बहुत सुंदर रचना👌

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  4. बहुत ज़रूरी है इन सब को लिख देना ... कागज़ पे उतार देना नहीं तो ये जीने नहीं देते ... ये पल अन्दर ही अन्दर खाली कर देते हैं ...
    पर कई बार इन अनार विरोधों को इन मजबूरियों को जीना पड़ता है ... विष पीना पड़ता है ...
    बहुत अच्छा लिखा है ... अच्छी रचना ...

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  5. आप सभी का बहुत बहुत आभार..

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