चूड़ी काज़ल कंगन और ऑंसू,
बारिश कोहरा बादल और आँसू
पीपल पतझड़ जेठ दुपहरी,
झूले साथी सावन और आँसू,
मेरी पीड़ा मेरा दुखड़ा बोझ भयंकर,
मिश्री बातें तेरी जियरा सदल और आँसू
लकड़ी गठ्ठर,रोटी लून सक्कर
गैय्या ग्वाले,बन्सी जंगल और आँसू
फावड़ा कुटला ,खेत का टुकड़ा,
मुठठी फ़सलें,भतेर दंगल और आँसू,
गांव पनघट हल्ला बचपन
परदेश तन्हा कमरा बंजर और आँसू
दरिया पर्वत भूख़ बेकारी लाचारी
आक्षित आखर ऐपण चंदन और आंसू
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-07-2019) को "कुछ नया होना भी नहीं है" (चर्चा अंक- 3397) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आंसुओं की नदिया में हम डूब उतरा रहे हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
सादर
बहुत खूब ...
ReplyDeleteअच्छे हैं सभी शेर ... नया अंदाज़ ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 17 जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर सर
ReplyDeleteसादर
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर मर्मस्पर्सी रचना अद्भुत शब्द संयोजन।
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