देर रात तक नुमाईश में प्रोग्राम जारी रहा,
जनता मफ़लर,पंखी में सिमटती रही,
नेताजी को सिगड़ी का पुख्ता इंतेज़ाम जारी रहा,
लोग स्टार नाईट को तरसते रहे देर तक,
उनका चुनावी पैगाम जारी रहा,
मौत का कुँआ हो या नटनी का बैलेंस,
भूख़ के वास्ते ज़िन्दगी का डांस जारी रहा,
कौनसी गली में किस मुँडेर विकास दुकाँ है,
अपनी नाकामियां गैरो पे इलज़ाम जारी रहा,
वोट के चक्कर में नेता,अफसर पोस्टिंग में फंसा है,
भीड़ को उलझाने का काम जारी रहा,
सिपाही की पेंसन पे पल रहा आधा पहाड़,
कमुली खिमुली परुली या और नाम जारी रहा...
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
:-) :-)
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 31 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
उम्दा।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमौत का कुँआ हो या नटनी का बैलेंस,
ReplyDeleteभूख़ के वास्ते ज़िन्दगी का डांस जारी रहा,
लाजवाब सृजन...
वाह!!!
जारी है ...
ReplyDeleteअच्छा व्यंग और सटीक रचना ...
तंज कमाल के है भाई साब
ReplyDeleteउम्दा लिखावट में।