घनघोर अंधेरे में रोशनी का दीदार सा हैं
आज फिर हमें तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार सा हैं.
दो पल के रिश्ते में तुम सकुने उम्र दे गये
मेरे वजूद पर तेरी सोहबत का उधार सा हैं..
लाते ला ते तूफान हमे ये किधर ले आया हैं
पास मेरे तुम दूर चल दिये जबके काफिला मझधार सा हैं
रोज़ी रोटी के फेरो ने हमदर्दी को मार दिया
पल दो पल का मिलना तो बस रिश्तो का व्यपार सा हैं..
माना मैंने की तुम काँटो पर चलते हो,
आकर देखो रस्ता मेरा भी तलवार की धार सा हैं...
वाह
ReplyDeleteआभार ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteतलवार पर चलने वाले काँटों के रास्तों की भी क़द्र करते हैं ...
बहुत लाजवाब और दिलकश नए अन्दाज़ के शेर काहे हैं ज़फ़र साहब ... बहुत बधाई ...
बहुत धन्यवाद sir
DeleteWaah
ReplyDeleteशुक्रिया lori ji
DeleteI cannot love this post enough!
ReplyDelete