Monday 19 November 2018

चिता की आग में जल रहा हूँ मैं ......






चिता की आग में जल रहा हूँ मैं ,
धीरे धीरे कितना बदल रहा हूँ मैं ,



एक रोज़ कभी मिली थी फूलो की सेज़,
जबकि रोज़ काँटों पर चल रहा हूँ मैं ,

हर बात तेरी नसीब समझकर मानता  रहा,
तेरे लिए कितना बदल रहा हूँ मैं,

ये बेबसी ये कमजोरी हर चेहरे मे ज़ाहिर हैं,
थोड़ा थोड़ा हर शख्श मे  पल रहा हूँ मैं 

हर बार पछता कर फिर तुझपे यकीन करता हूँ,
कैसे कह दूँ ठोकरों से संभल रहा हूँ मैं ,

तीज -त्यौहार अब नादानी पिछड़ापन लगते हैं,
शहर आके पत्थर में बदल रहा हूँ मैं,

लो आ गया इलेक्शन वादों इरादों का दौर,
जुबाने ज़हर की केचुली बदल रहा मैं ......... !!!




चित्र गूगल आभार

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