Thursday 29 November 2018

तेज़ बारिस थी धूप मुह दिखाने लगी....!!!










तेज़ बारिस थी धूप मुह दिखाने लगी,
चुनाव नजदीक है शायद,अयोध्या याद आने लगी,


बमुश्किल इस कौम को अंधेरो से निकाला था,
एक भीड़ फिर सच को जुठ बताने लगी,

मुददत बाद जब शाम को घर वक़्त पे चला गया,
गले लगा लिया माँ ने और आँख छलछलाने लगी,

दर्द में डूब कर जीना सीख ही लिया था गोया,
ज़िंदगी करवट बदल कर हँसाने लगी,

अपने लहू से सीच कर मैंने सज़र जवान किया,
फल जब पक गया दुनिया हक़ जताने लगी,

खुदही तुम्ही ने एक दीवाने की मजनू किया,
आशिक़ की सदा को दुनिया फिर पत्थर दिखाने लगी,

तुम नादान हो उलझे रहो जमाने की दौड़ भाग में,
एक अफसरा मुझे आजकल नई दुनिया दिखाने लगी,

तमाम रात एक फ़रिश्ते से जिरह करता रहा,
वो कली घबराकर तकिये पर ऑंसू बिछाने लगी,


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