Thursday 5 September 2019

खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही....





मुझ पर जाने कौन सी बेक़रारी रही,
खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही,


तुमने कई बार मुझकों ठुकरा दिया,
एक उम्मीद तेरे इंतज़ार में क्यो ठाड़ी रही,

मेरे घर मे रौनको का बसेरा रहा,
बेटियां मेरी आँगन की दुलारी रही,

सिर्फ औरो की चोरियो पे आवाज़ उठाते हैं,
बस इतनी बाकी हममें वफ़ादारी रही,

इतने आँसू मै खामोशी से पी गया,
उम्र भर मेरी जुबान ख़ारी रही...

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादर

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  3. बहुत शानदार हर शेर कुछ कहता सा ।

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. hmmm.....aaj ke haalton se aahat sher hain sab ....roz apne chaaron ghat rhe karmon ka vivran

    bdhaayi ..achhe bhaawon ko ukerne ke liye

    aap mere blog tak aaye...blog tak aane..rchnaa ko pdhne aur sraahne ke liye tah e dil se shukriyaa

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  6. जुबां खारी रही

    वाह वाह वाह
    शायरी वो भी असल
    कमाल कर दिया

    लिखते रहें

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