Friday 27 September 2019

तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ...






वक़्त बे वक़्त हर बात पें निकल आये आँसू,
तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ



एक हम थे जो ख़ामोश ज़हर पी  गयें,
तुमने जा-जा के लोगो को दिखायें आँसू,


सारी दुनियादारी जो शाम के अंधेरे में भूल गयें,
उन गुस्ताखियों ने कितने आँख रुलाये आँसू,


आँखे सुख़ गयी,रोशनी भी जाती रही,
तुम ना आये तो किसके लियें बचायें आँसू,


बात जो ज़माने से तेरे-मेरे जहन में क़ैद थी,
पल्को से जानो के सफ़र में सब कह आये आँसू,


बाखुदा नज़र -नज़र में क्या गज़ब फ़र्क हैं,
बंद हो गयी आँख जब तुमको नज़र आये आँसू...

7 comments:

  1. वाह ज़फ़र भाई साब वाह
    आँखे सुख़ गयी,रोशनी भी जाती रही,
    तुम ना आये तो किसके लियें बचायें आँसू,-
    हद्द बेकरारी है।
    "गुस्ताखी" लफ्ज़ का मज़ा इससे ज्यादा कभी नहीं लिया मैंने।
    हर शेर एक मुकम्बल तस्वीर उकेर रहा है।
    नज़र नज़र में क्या गजब फर्क है....शानदार ग़ज़ल। बधाई।

    पधारें -
    शून्य पार 

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. एक हम थे जो ख़ामोश ज़हर पी गयें,
    तुमने जा-जा के लोगो को दिखायें आँसू,...
    ये अदा होती है ... नखरा होता है उनका ... जग मेंन फैला देते हैं अपने गम ...
    हर शेर बहुत कमाल के ... लाजवाब ग़ज़ल ...

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  4. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (29-09-2019) को "नाज़ुक कलाई मोड़ ना" (चर्चा अंक- 3473) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

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  5. आंसुओं का अपना एक शब्दकोश होता है जो अपने में न जाने कितने अर्थ समेटे होते हैं समझ पाना आसान नहीं।

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  6. बहुत सुन्दर

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