Monday 16 March 2015

किस किस तो कहते के हम बेगुनाह थे.....














ये अँधेरे न कट सके मेरी राह से
बेकसी को इश्क़ हो गया था गुनाह से,


वो गर्मी वो जज्बा जम के बर्फ हुयी,
ख़ाक  ही हासिल हैं अब निक़ाह  से ,

सवालात की दुनिया में जज़्बात चूर हुए
किस किस तो कहते के हम बेगुनाह थे,

ख़ुदसे चेहरा छुपा तो लिया था मगर
हर हाथ में आईना था हम जिस जगाह थे,

बदनसीबी ने क्या क्या दिन दिखाए
मुनसिब ही कातिल हो,क्या मिलता ज़िरह से ,


आँसुओ से रिस रिस कर पछतावे झड़ते रहे,
फिर ना जम सके जो एक बार उतरे तेरी निग़ाह से ... !!!



 




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