गले से लगा मगर आँख से उतर गया
तेरा एक फैसला कितने फासले कर गया
बात वो बात अब शायद कभी न हो
जहर तो जानेमन उमरभर को घुल गया
तू मेरा फक्र मेरा गुरुर था मेरे हमसफ़र
देखा जो तेरे हौसले मैँ डर गया
कुछ परिंदे कभी लौट कर नही आये,
दूध सी ज़िन्दगी में,एक बूद जो खट्टा पड़ गया
घर का वीराना उसे तलाश करता हैं
पायलों को झनझन में सन्नाटे जो भर गया
दफ्तरो में ताले लगे हैं रास्ते सुनसान हैं
सुना हैं कल कोई इंसानियत का क़त्ल कर गया
तेरा एक फैसला कितने फासले कर गया
बात वो बात अब शायद कभी न हो
जहर तो जानेमन उमरभर को घुल गया
तू मेरा फक्र मेरा गुरुर था मेरे हमसफ़र
देखा जो तेरे हौसले मैँ डर गया
कुछ परिंदे कभी लौट कर नही आये,
दूध सी ज़िन्दगी में,एक बूद जो खट्टा पड़ गया
घर का वीराना उसे तलाश करता हैं
पायलों को झनझन में सन्नाटे जो भर गया
दफ्तरो में ताले लगे हैं रास्ते सुनसान हैं
सुना हैं कल कोई इंसानियत का क़त्ल कर गया
कुछ परिंदे कभी लौट कर नही आते
ReplyDeleteदूध सी ज़िन्दगी में,एक बूद जो खट्टा पड़ गया
बहुत खूब ... नया सा प्रयास इस शेर में ... बहुत ही लाजवाब लगा ...
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बात वो बात अब शायद कभी न हो
ReplyDeleteजहर तो जानेमन उमरभर को घुल गया
वाह, कितनी सटीक बात कही है।
बहुत खूबसूरत और सीख देने वाली रचना। कभी कभी हम ऐसी गलतियां करते हैं। जो गले लगने के बाद भी अपना असर छोड़ना बंद नहीं करतीं। बेहद अच्छी रचना।
ReplyDeleteDamdaar sher:
ReplyDeleteदफ्तरो में ताले लगे हैं रास्ते सुनसान हैं
सुना हैं कल कोई इंसानियत का क़त्ल कर गया
Damdaar sher:
ReplyDeleteदफ्तरो में ताले लगे हैं रास्ते सुनसान हैं
सुना हैं कल कोई इंसानियत का क़त्ल कर गया
क्या बत है सर।एक-एक शेर लाज़वाब।बहुत खूब।
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