आखिर मुझमे मेरा क्या हैं,
तुम लोगो की रश्मो रिवाजो
घुटन की जंजीरो में,
कशमकश की जद्दो जहद में
हाथो की खाली लकीरो में
ये करो ये ना करो की तकरीरों में
इन तशविरो में ताबिजो में
तुमने मेरा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं....
थोडा थोडा रोज़ कटता जाता हूँ
तुम्हारे मुताबिक बटता जाता हूँ
कैसी ओड़ी मज़बूरी हैं
बेचैन खुद,दुनिया में घुलती कस्तूरी हैं
बामुश्किल हैं बाधा खुदको
तुम्हारे ताबूतों में नापा खुदको
तुम्हारी सुनी तुम्हारी करी
मर गया हैं मुझमे मैं ही
तुमने ही ये जहर पिलाया,
पहरो में आवाज़ों को दबाया
फिर रोना धोना झूठ बनावटी घेरा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं......
मुझको मैं ही बनने देते,
गिरने देते लड़ने देते
ठोकरों की चक्की में छनने देते
मुझको यु न बाधा होता,
पा लेता जो कुछ पाना होता
मंजिले सब अपनी बनांते,
परिंदे आसमानों में बेख़ौफ़ उड़ पाते
तुमने पिंजरा जो खोला होता
कफ़स ने अब जिन्दा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं......
तुम लोगो की रश्मो रिवाजो
घुटन की जंजीरो में,
कशमकश की जद्दो जहद में
हाथो की खाली लकीरो में
ये करो ये ना करो की तकरीरों में
इन तशविरो में ताबिजो में
तुमने मेरा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं....
थोडा थोडा रोज़ कटता जाता हूँ
तुम्हारे मुताबिक बटता जाता हूँ
कैसी ओड़ी मज़बूरी हैं
बेचैन खुद,दुनिया में घुलती कस्तूरी हैं
बामुश्किल हैं बाधा खुदको
तुम्हारे ताबूतों में नापा खुदको
तुम्हारी सुनी तुम्हारी करी
मर गया हैं मुझमे मैं ही
तुमने ही ये जहर पिलाया,
पहरो में आवाज़ों को दबाया
फिर रोना धोना झूठ बनावटी घेरा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं......
मुझको मैं ही बनने देते,
गिरने देते लड़ने देते
ठोकरों की चक्की में छनने देते
मुझको यु न बाधा होता,
पा लेता जो कुछ पाना होता
मंजिले सब अपनी बनांते,
परिंदे आसमानों में बेख़ौफ़ उड़ पाते
तुमने पिंजरा जो खोला होता
कफ़स ने अब जिन्दा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं......
Lillaha!!! kashish ki intehaan wala kalam .....
ReplyDeleteLillaha!!! kashish ki intehaan wala kalam .....
ReplyDeleteबहुत खूब ... छटपटाते हुए मन से निकली आह ...
ReplyDeleteअपने आप को तलाशते शब्द ... अच्छी नज़्म ....
ज़फ़र साहब यूँ करके ही आदमी थोड़ा-थोड़ा ढलता है, घुलता है और पिघल जाता है। जिन्दगी का फलसफा बस यूँ करके ही है। बहुत खुब।
ReplyDeleteकोटि कोटि नमन कि आज हम आज़ाद हैं
तुमने पिंजरा जो खोला होता
ReplyDeleteकफ़स ने अब जिन्दा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं.....
..........लाजवाब करती प्रस्तुति ))
एक आह निकली है रचना के माध्यम से ...
ReplyDelete..वैसे भी इंसान एक दूजे के लिए जीता हैं जिंदगी में .. .उसे पता ही नहीं चलता वह अपने लिए कितना जी पाया है ...
bahut bahut sundar
ReplyDelete'
तशविरो में ताबिजो में
ReplyDeleteतुमने मेरा छोड़ा क्या हैं
आखिर मुझमे मेरा क्या हैं....
बहुत खूब , बधाई आपको !
आखिर मुझमें मेरा क्या है,
ReplyDeleteतेरा, इसका जिसका उसका
कहना ही तो आज तक माना है।
लाजवाब, एकदम अनोखी रचना।
आखिर मुझमें मेरा क्या है,
ReplyDeleteतेरा, इसका जिसका उसका
कहना ही तो आज तक माना है।
लाजवाब, एकदम अनोखी रचना।