चूड़ियों की खनखन मे,गेसुओं की उलझन में,
ज़िन्दगी चेहरे पड़ती हैं बारबार,आजकल दर्पण में,
सारी रात दुनिया जहान मेरी गुलाम रही,
एक जुनून सा हावी रहा तेरे मेरे तन मन मे,
कुंडीया पाबंदिया एक पल में सब जाया हुए,
इंजन सा एक दौड़ रहा हाय मेरी धड़कन में,
तख्तो ताज कोई जागीर किसे मिले न मिले
ये रंग बाखुदा नसीब हो हरेक जीवन में,
बस एक मुलाकात से क्या खूब जज़्बात पैदा हुए,
फूल सा वो मुरझा गया,आग लगे इस जोबन मे,
गुनाह तेरे भी रहे होंगे जो मुझसे आ टकराई हैं,
फ़िज़ा माँग ली तूने बहारो के मौसम में,
उसूलो की लड़ाई हैं कठिनाई तो बेमानी हैं,
सीता चली लक्ष्मण चले जब श्री राम चले वन मे,
राते जगती हैं दिन बेचैन फिरते हैं,
एक ख्वाब छू लिया था मैंने किसी उफन मे,
कश्तियां खुद तुफानो को गले लगती हैं,
जाने कौन सा सकून हैं कैसा करार हैं इस चुभन में,
आज कैसे तुम हमारी गलतिया गिनाते हो
दरिया सारि हदे भूल गया चौमास की उफन मे,
यार परदेश में बात करने को तरस जाते हैं,
क्या खूब ईद मनी होगी मेरे वतन मे,
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