सात फेरों के सारे वादे,खुदगर्ज़ी में ख़ाक हुए
तेरी तू में,मेरी मै में,हम दोनों बर्बाद हुए
तेरी तू में,मेरी मै में,हम दोनों बर्बाद हुए
कुछ बातों का सुलझना जैसे अब नामुमकिन हैं
जन्नत का सा वज़ूद था पर कश्मीर से हालात हुए,
सौ मसलो का हल बस एक हल्की सी गर्मी हैं
तुमने यू जब गले लगाया कितने पंछी आज़ाद हुए,
बारिश बादल फूल बहारे, ये तो सब दिखावा हैं,
चंद शाखों ऐसी भी हैं जो सावन में आषाढ़ हुए,
एक भी चिराग तन्हा गर तुफानो से टकराता हैं
मुझको कोई फर्क नही,कितने दरिया पार हुए,
किन हालातो से निकलकर हमने अलख पायी हैं
शमशानों से आग चुराकर,अंधेरो से दो चार हुए,
तमाम सूरज ,चंद अंधेरो से जब हार गए
मेरे शहर में कितने दंगे फसाद हए,
किलकरियो को जब चिंगारियों ने दबा दिया,
बच्चों के खेल खिलोने दुनिया के ज़िहाद हुए
किलकरियो को जब चिंगारियों ने दबा दिया,
बच्चों के खेल खिलोने दुनिया के ज़िहाद हुए
मेरी ही वतन परस्ती ने तुझे हिन्दोस्तां बनाया
तेरी दीवानगी में कितने 'पहलू' कितने 'अख़लाक़'हुए...!!!
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