राजदार ने मिला दी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में..
घौसले उजड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में,
मौत ने भी उसकी इंकलाब पैदा किया
कुछ आग बची रह गयी थी राख़ में,
गले भी मिलता हैं तो खजर निकाल लेता हूँ
ये कौन ज़हर घोल रहा हमारे दिमाक में,
बाखुदा ये दिन भी था हमारी किश्मत में,
हाथ जो तुमने रख दिया मेरे हाथ में,
मैं भी तुमको लूट के विलायत भाग जायूँगा
तुम उलझे रहो मज़हबी दंगे फसाद में,
जिक्र तुम्हारा हो तो खुद सर झुका लू
तूने क्या छोड़ा हैं जो बोल दू मैं जवाब मे,
लाख कोशिश करो अब जफ़र को पा नहीं सकते
लुत्फ लेने लगे हैं अब हम इसी प्यास में.... !!!
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