Wednesday 12 September 2018

क्या करूँ के मेरे पाँव मेरी चादर से ज्यादा हैं...!


























क्या करूँ के मेरे पाँव मेरी चादर से ज्यादा हैं
जुनून हैं के मेरे हक में मुक़द्दर से ज्यादा हैं,


चिराग हूँ हज़ार अंधेरों के वजूद मिटा सकता हूँ
मेरी अहमियत तेरे तसव्वुर से ज्यादा है

वो शाह हो तो हो मुझे मेरी मुफ़लिसी पे गुमान है
मैं दरिया हूँ मुझे सफ़र का तजुर्बा समुन्दर से ज्यादा है

हार  ही जाता  हूँ जैसे ही जीतने को होता हूँ
मसले मेरे नसीब में सिकंदर से ज्यादा है,

चौराहे पर भीड़ कौरवो की,मोड़ पर है रावण खड़ा
फेर इस चक्रव्यूह में अभिमन्यु की ख़बर से ज्यादा है,

एक आवाज़ एक इंक़लाब तुमने मुझी में दबा दिया
उस क़त्ल में दफ़न हुआ गौरीशंकर से ज्यादा है

सारी जफ़ायें जज़्बात सारे एक साथ क़त्ल हुए
तेरे सीने में जफ़र सिर्फ़ खंज़र से ज्यादा है,

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