Thursday, 27 September 2018

क्या मै तुम्हारे तरीके सीख पाऊँगा.....???

















कोरा ही चला था सफ़र पर
जैसे जैसे लोग मिले अपना अपना रंग छोड़  गये ,
अपने हिसाब से ही तोड़  -मरोड़ गये
अपने तज़ुर्बो को तुम्ही ने लगाया ,
तुम्ही ने हिंदू और मुसलवां बनाया
किसीने अछूत कहा किसीने शीश छुक़ाया
मैं तो बेजुबान बेहद मासूम -नादान था
नन्हा सा एक कमज़ोर जान था
तुम्हरी अगुलियां पकड़ के चला
तुम्हरे लब्जो जुबान में ढला,
साफ सफेद कागज़ पे तुमने ही  ये रंग गड़ा
जिसने जैसा जितना कहा वैसा चढ़ा,
बदल के शख्शियत मेरी अब तुम्हे परहेज़ हैं
मेरे हर रूप का जबके तू ही रंगरेज़ हैं
फिर क्या इस कसमकस से मैं जीत  पाऊँगा
तन्हाई में रोऊंगा,महफ़िल में गा
ऊँगा
तुम्हारे सामने जूठे चेहरे बनाऊँगा
बेबात हस दूंगा,अपना गुस्सा दबाऊंगा
क्या मै तुम्हारे तरीके सीख पाऊँगा....

जो बन गया हूँ  ये तुम्हारा दिया अंजाम हैं,
इंसा तो पैदाइशी फ़क़द इंसान हैं
तुम्ही उसे बंदिशों दायरों में नापते हो,
धर्मों जातियों में काटते हो,
इन्ही कायदों में जो घुले वही शरीफ हैं,
क्या यही तुम्हारी तौफ़ीक़ हैं
जफ़र क्या तू भी युही जाया होगा
दुसरो का ढाला उनका का बनाया होगा
टूट जायूँगा मै भी या
अपने मुताबिक जहांन बनायुगा
क्या मै तुम्हारे तरीके सीख पाऊँगा....

तुम्हारे सही को बस सही कहूंगा
जहा कहोगे बस वही रहूंगा
तुम्हारे रास्तो से जायूँगा
तुम्हारी छाँव में बैठूँगा
तुम्हारे आसमानो मैं ही उड़ूगा
तुम्हारे दायरों मैं लिखूँगा
इसी तौर से जीऊँगा
इसी तरीखे से बीत जायूँगा
क्या मै तुम्हारे तरीके कभी सचमें  सीख पाऊँगा.......!!!

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